इतिहास उन्हें क्यों आतंकित करता है?
The Wire
अमेरिका हो या भारत, पाठ्यपुस्तकों को बैन करने, उन्हें संशोधित करने या उन्हें चुनौती देने की प्रक्रिया स्वतःस्फूर्त नहीं होती. इसके पीछे रूढ़िवादी, संकीर्ण नज़रिया रखने वाले संगठन; समुदाय या आस्था के आधार पर एक दूसरे को दुश्मन साबित करने वाली तंज़ीमें साफ़ दिखती हैं.
‘टू किल ए माॅकिंग बर्ड’- हार्पर ली नामक लेखिका का यह इस उपन्यास (प्रकाशन वर्ष 1960) विश्वभर में चर्चित है. उपन्यास का फोकस श्वेत युवती के साथ बलात्कार के फर्जी आरोप में फंसाए गए एक अश्वेत युवक को दोषमुक्त साबित करने के लिए एटिकस फिंच (Atticus Finch) नामक श्वेत वकील के लगभग अकेले संघर्ष की कहानी बयां करता है. ‘भारतीय इतिहास का पुनर्लेखन होना चाहिए ताकि वह भारतीय जनसमुदाय और उनके आतताइयों तथा आक्रमणकारियों का इतिहास बन सके, ऐतिहासिक युगों का वर्गीकरण भारतीय समाज के क्रमशः विकास, उसके आंदोलन और क्रांतियों के अनुसार होना चाहिए. विदेशी शासकों के अनुसार नहीं. भारत द्वारा विभिन्न महाद्वीपों की सांस्कृतिक विजय के इतिहास को इसमें शामिल करना चाहिए.’
एक ऐसे वक्त़ में जबकि अमेरिका में अश्वेतों के नागरिक अधिकारों के लिए सरगर्मियां धीरे-धीरे बढ़ रही थीं, उन दिनों प्रकाशित इस उपन्यास ने पाठकों की कई पीढ़ियों का प्रभावित किया है और तमाम लोगों को प्रेरित किया है कि वह नस्लीय शोषण और उत्पीड़न के खिलाफ आवाज़ उठाएं.
कुछ साल पहले दुनिया के अग्रणी लाइब्रेरियनों द्वारा इस किताब को सबसे जरूरी पठनीय किताब घोषित किया गया है, लेकिन इस वजह से अमेरिका के अलग-अलग स्कूलों में विभिन्न वजहों से इस पर पाबंदी लगने या उसे चुनौती देने के मामले में कोई कमी नहीं आई है. कहा जाता है यह किताब आज भी इस फेहरिस्त में टाॅप पर बताई जाती है.
जानकारों के मुताबिक, किताबों पर पाबंदी लगाने या उन्हें चुनौती देने के मामले में अमेरिका के अंदर हाल के समयों में तेजी आई है. बहुचर्चित किताबों को अदालती कार्रवाइयों को झेलना पड़ा है कि वह युवा पाठकों के लिए अनफिट है. जैसे कि उम्मीद की जा सकती है कि इसने स्कूलों में दमघोंटू वातावरण को निर्मित किया है, अलग-अलग मसलों पर विचारों के मुक्त आदानप्रदान को कुंद किया है और स्कूल के अंदर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के छात्रों के संवैधानिक अधिकार को गंभीरता से बाधित किया है.