इंदिरा गाँधी ने एक दिन पहले ही कहा था- मैं रहूँ या ना रहूँ
BBC
भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की पुण्यतिथि पर रेहान फ़ज़ल याद कर रहे हैं वो दिन जब उन्हें गोली मारी गई थी और उनकी जान बचाने के लिए हर संभव कोशिश की गई थी.
भुवनेश्वर से इंदिरा गाँधी की कई यादें जुड़ी हुई हैं और इनमें से अधिकतर यादें सुखद नहीं हैं.
इसी शहर में उनके पिता जवाहरलाल नेहरू पहली बार गंभीर रूप से बीमार पड़े थे जिसकी वजह से मई 1964 में उनकी मौत हुई थी और इसी शहर में 1967 के चुनाव प्रचार के दौरान इंदिरा गाँधी पर एक पत्थर फेंका गया था जिससे उनकी नाक की हड्डी टूट गई थी.
30 अक्तूबर 1984 की दोपहर इंदिरा गांधी ने जो चुनावी भाषण दिया, उसे हमेशा की तरह उनके सूचना सलाहकार एचवाई शारदा प्रसाद ने तैयार किया था.
लेकिन अचानक उन्होंने तैयार आलेख से अलग होकर बोलना शुरू कर दिया. उनके बोलने का तेवर भी बदल गया.
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