इंडियन बच्चों को पेरेंट्स से छीनकर अनाथालय भेज रहे ये देश, कुछ ही सालों में बढ़ा ट्रेंड, G20 में उठ सकता है मामला?
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फसादों से दूर रहने वाले नॉर्वे में कुछ अलग पक रहा है. ये बात हम नहीं, कई देश कहते रहे. असल में इसकी वजह है, वहां की विवादित चाइल्ड केयर पॉलिसी. बच्चों की सुरक्षा के नाम पर उन्हें पेरेंट्स से जबरन अलग करके अनाथालयों में भेजा जा रहा है. खास बात ये है कि ऐसा भारत और बाकी दक्षिण एशियाई देशों के साथ होता है, वेस्ट के साथ नहीं.
G20 में कई मुद्दों पर बात होगी. इसमें एक मसला विदेशों में भारतीय बच्चों की कस्टडी भी हो सकता है. सुप्रीम और हाई कोर्ट के कई रिटायर्ड जजों ने मिलकर जी20 में शामिल देशों से ये अपील की. चिट्ठी में लिखा गया कि हाल के दशक में बहुत से भारतीय परिवार काम के लिए दूसरे देशों में गए. बहुतों के पास छोटे बच्चे हैं. लेकिन लगातार ऐसे केस आ रहे हैं, जिसमें पेरेंट्स पर अपने ही बच्चों के शोषण का आरोप लगाकर देशों की चाइल्ड केयर संस्थाएं बच्चे छीन रही हैं.
किन देशों पर लग रहे आरोप नॉर्वे, जर्मनी, फिनलैंड, ब्रिटेन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे बड़े देशों में ऐसा हो रहा है. सबसे ज्यादा परेशानी की बात ये है कि बच्चे सरकारी कस्टडी में अनाथालय में रख दिए जाते हैं. केस हारने पर पेरेंट्स अपने बच्चों से हमेशा के लिए दूर हो जाते हैं. या फिर केस लंबा खिंचे तो भी कई देशों का नियम है कि फॉस्टर केयर में 2 साल रह चुका बच्चा वापस घर नहीं लौट सकता. इसपर लगातार बवाल मचता रहा.
भारत का चर्चित मामला कुछ महीनों पहले बेबी अरिहा का मामला खूब उछला था. भारतीय मूल की इस डेढ़ साल की बच्ची को जर्मनी के बाल सुरक्षा अधिकारियों ने माता-पिता से अलग करके अनाथालय में डाल दिया. अधिकारियों को शक था कि बच्ची के साथ यौन शोषण हुआ है. पेरेंट्स की लाख कोशिशों के बाद भी केस पर जल्दी फैसला नहीं हुआ. अब जर्मनी के नियम के मुताबिक हो सकता है कि बच्ची हमेशा के लिए फॉस्टर केयर में ही रह जाए.
क्या होता है नॉर्वे में
नॉर्वे इसपर ज्यादा घिरा रहा. वहां चाइल्ड वेलफेयर एजेंसी को बेर्नवर्नेट कहते हैं, जिसका मतलब है बच्चों की सुरक्षा. एजेंसी को कानूनी हक है कि वो संदेह के आधार पर भी फैसला ले सके. जब भी उसे लगता है कि माता-पिता बच्चे की अनदेखी कर रहे हैं या उसके साथ किसी तरह की हिंसा हो रही है तो वो तुरंत एक्शन में आती है. किसी तरह का सवाल-जवाब या सफाई नहीं मांगी जाती, बल्कि बच्चे को तपाक से उठाकर फॉस्टर केयर या किसी वेलफेयर संस्था में भेज दिया जाता है.
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