आप सरकार को झटका, लॉ डिपार्टमेंट ने कपिल सिब्बल समेत कई वकीलों के बिलों के भुगतान से किया इनकार
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लॉ डिपार्टमेंट वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, राहुल मेहरा और वरिष्ठ अधिवक्ता ज्योति मेंदिरत्ता और सुधांशु पाधी की विभिन्न मामलों में नियुक्ति के लिए भी सहमत नहीं है, जहां उन्हें कानून मंत्री कैलाश गहलोत द्वारा सीधे तय प्रक्रिया का पालन किए बिना नियुक्त किया गया था.
दिल्ली सरकार के लॉ डिपार्टमेंट ने वकीलों के करोड़ों रुपए के बिल चुकाने से इनकार कर दिया है. डिपार्टमेंट ने भुगतान न करने की वजह वकीलों द्वारा वित्तीय नियमों का पालन न करना और अनुबंध की शर्तों का उल्लंघन करना बताया है.
जिन वकीलों के बिल की राशि बकाया है, उनमें कपिल सिब्बल (15,50,000 रुपए) राहुल मेहरा (9,80,000 रुपए) जैसे वकील भी शामिल हैं. इन वकीलों के बिल को लॉ डिपार्टमेंट ने खारिज कर दिया. दिल्ली सरकार ने इन वकीलों द्वारा नियमों का पालन न करने का हवाला दिया है. इतना ही नहीं लॉ डिपार्टमेंट वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, राहुल मेहरा और वरिष्ठ अधिवक्ता ज्योति मेंदिरत्ता और सुधांशु पाधी की विभिन्न मामलों में नियुक्ति के लिए भी सहमत नहीं है, जहां उन्हें कानून मंत्री कैलाश गहलोत द्वारा सीधे तय प्रक्रिया का पालन किए बिना नियुक्त किया गया था. प्रमुख सचिव (लॉ) ने कानून मंत्री, सीएम और एलजी को रिपोर्ट सौंपी है. इसमें उन्होंने दिल्ली नियमावली के जीएनसीटी के व्यापार के लेनदेन के नियम 57 के के उल्लंघन के तहत मामले को आगे बढ़ाने में अपनी असमर्थता जताई है.
लॉ डिपार्टमेंट के सूत्रों के मुताबिक, दिल्ली हाईकोर्ट में एक मामले की सुनवाई के लिए राहुल मेहरा को कैलाश गहलोत ने 28.05.2021 के एक गैर-आधिकारिक नोट के जरिए सीधे नियुक्त किया गया था. हालांकि, इस केस में आप सरकार को हार मिली थी. ऐसा ही कुछ कपिल सिब्बल के मामले में हुआ. कैलाश गहलोत ने कपिल सिब्ब्ल को 23.10.2018 को दिल्ली हाईकोर्ट में एक मामले में सीधे नियुक्त किया था. इस केस में कपिल सिब्बल ने (15,50,000 रुपए की फीस मांगी थी. उन्होंने इसे बिल को सीधे कानून मंत्री कैलाश गहलोत के पास भेजा था. ऐसे में इसे प्रक्रिया का उल्लंघन माना गया है.
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में सरकार की ओर से वरिष्ठ वकीलों को नियुक्त करने और भुगतान करने के मामलों में निर्धारित प्रक्रिया में अधिवक्ताओं को उनकी नियुक्ति से पहले फीस का निर्धारण किया जाता है और फिर वित्त विभाग से इसकी अनुमति ली जाती है. उसके बाद कानून मंत्री की मंजूरी लेने के बाद नियुक्त किया जा सकता है, जिसे बाद में एलजी द्वारा इजाजत लेनी पड़ती है.
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