आपातकाल के बाद संविधान में हुए वो बदलाव, जो बन गए लोकतंत्र के लिए सबसे बड़े सेफ्टी वॉल
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जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी को दो मामलों में दोषी ठहराया था. पहला, उन्हें चुनाव प्रचार के दौरान अपने निर्वाचन क्षेत्र रायबरेली में सरकारी अधिकारियों जैसे डीएम और इंजीनियरों की मदद ली. इसके अलावा इन अधिकारियों ने इंदिरा गांधी की रैलियों के लिए मंच का निर्माण किया था.
26 जून 1975 की सुबह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रेडियो से ऐलान किया "भाइयो और बहनो, राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है, इससे आतंकित होने का कोई कारण नहीं है." इस वाक्य की तपिश ने लोकतंत्र की लहलहाती फसल को अपने आगोश में ले लिया और जनतंत्र की उर्वरक जमीन को बंजर बनाने के लिए रायसीना हिल्स आमादा हो गई.
दरअसल, 25 जून की रात में ही तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अनुशंसा पर तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने संविधान के आर्टिकल 352 के तहत पूरे देश में आपातकाल लगा दिया था.
आपातकाल यानी संविधान के अक्स तले ही उस रात संविधान की 'हत्या' कर दी गई. आम आदमी की आजादी से लेकर कानून की बागडोर तक को चंद लोगों ने अपने हाथ में ले ली. भारत की संसदीय प्रणाली अपनी 28 साल की यात्रा पर अभी इतरा ही रही थी कि दिल्ली के शाही तंत्र ने इसे अपना ग्रास बना लिया. आंतरिक सुरक्षा के नाम पर पूरे तंत्र को चंद हथेलियों में कैद कर दिया गया. जो दाग 49 वर्ष पहले देश के दामन पर लगे थे क्या उसे भविष्य में कोई सत्ता दोहरा सकती है. भय से भरा ये सवाल हर जहन में आज भी कौंध जाता है.
12 जून एक दु:स्वपन की तरह
इंदिरा गांधी के लिए 12 जून 1975 की तारीख निराशा से भरी रही, उस दिन सुबह ही उनके बेहद करीबी दुर्गा प्रसाद धर का देहांत हो गया था. उन्हें दुनिया डीपी धर के नाम से जानती थी. अभी ये आंसू सूखे भी नहीं थे कि दोपहर होते होते गुजरात से एक और बुरी खबर आ गई, दरअसल, विधानसभा चुनाव के नतीजे के बाद कांग्रेस ने गुजरात में अपनी राजनीतिक जमीन गंवा दी थी. 182 सीटों वाली गुजरात विधानसभा में कांग्रेस को सिर्फ 74 सीटें मिलीं, लेकिन बात यहीं नहीं रुकी और दिन ढलते ही खबर उस शहर से आ गई जिस शहर में इंदिरा गांधी का बचपन बीता था.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इंदिरा गांधी बनाम राजनारायण के मामले में अपना फैसला सुनाते हुए साल 1971 के रायबरेली लोकसभा चुनाव को रद्द कर दिया था, जिसमें इंदिरा गांधी ने एक लाख से ज्यादा वोटों से राजनारयण को हराया था. इसके अलावा कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि निर्णय की तारीख से अगले 6 साल तक इंदिरा गांधी कोई चुनाव नहीं लड़ सकती हैं. इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद भारत की राजनीति में भूचाल आ गया. हालांकि कोर्ट ने उन्हें 20 दिन की मोहलत जरूर दी थी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट में वे अपील कर सकती थीं.
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