आख़िर किन हालात में कश्मीर छोड़ने को मजबूर होने लगे थे कश्मीरी पंडित?
BBC
वो कौन-कौन सी बड़ी घटनाएं थीं, जिसने कश्मीर के हालात को ऐसा बना दिया कि कश्मीरी पंडित अपना घर छोड़ विस्थापित होने लगे? पूरा ब्योरा यहां जानिए
''19 जनवरी, 1990 को रात क़रीब साढ़े 8 बजे दूरदर्शन पर हमराज फिल्म चल रही थी. अचानक मुझे दूर से आवाज़ सुनाई पड़ी, मैं उठा और अपने परिवार को मैंने उठाया. मस्जिदों में लाउडस्पीकर के जरिए ऐलान हो रहे थे. सड़कों पर नारे लगाए जा रहे थे. कुछ नारे हमारी (कश्मीरी पंडित) महिलाओं के ख़िलाफ़ भी लग रहे थे. इन हालात में कुछ कश्मीरी पंडित अपना घर छोड़ कश्मीर से जाने लगे. अगले दिन हालात और बुरे होने लगे, सड़कों पर सन्नाटा पसरा रहता था.''
बीबीसी हिंदी से बातचीत में संजय टिक्कू 1990 के दौर को याद करते हुए कुछ ऐसा बताते हैं. हालांकि, संजय उन 808 कश्मीरी पंडित परिवारों में से एक हैं जो कभी कश्मीर छोड़कर नहीं गये. संजय टिक्कू हब्बा कदल इलाक़े में बर्बर शाह मोहल्ले में रहते हैं और जो परिवार कश्मीर छोड़कर नहीं गए हैं, उन परिवारों का प्रतिनिधित्व करते हैं.
वरिष्ठ पत्रकार संजय काव को भी वो दौर याद है. काव कहते हैं कि जनवरी-फरवरी 1990 का ही वो महीना था जब उनका परिवार भी कश्मीर छोड़कर अपने रिश्तेदारों के घर दिल्ली आ गया.
बीबीसी हिंदी से बातचीत में संजय काव बताते हैं कि उस वक्त उनकी उम्र 22 साल के क़रीब थी और वो एक स्थानीय अख़बार में काम भी किया करते थे.
वो कहते हैं, ''मैं दिल्ली आया हुआ था, पता चला कि कश्मीर में हालात बेहद ख़राब हो गए हैं, मेरी मां को आर्थराइटिस था. मेरी मां बताती हैं कि उन्हें रातोंरात पैदल ही घर छोड़ना पड़ा था. पिताजी भी दिल्ली आए हुए थे जब उन्हें पता चला तो वापस कश्मीर गए लेकिन हमारे अपने घर से कोई सामान लेकर वापस नहीं आ सके. ख़ुद वो जैसे-तैसे कश्मीर से आ सके थे.''