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आकाश आनंद के रास्ते फिर से बंद करके आखिर मायावती चाहती क्या हैं?
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ऐसे समय में जब बहुजन समाज पार्टी दिन प्रति दिन अपनी लोकप्रियता खोती जा रही है, पार्टी सुप्रीमो मायावती अपना उत्तराधिकारी खोजने में अपनी सारी ऊर्जा लगा रही हैं. दुर्भाग्य से मास्टर कांशीराम की तरह उन्होंने अपनी पार्टी के लिए सेकंड लाइन की लीडरशिप नहीं तैयार की. जाहिर है कि इसका असर भविष्य में पार्टी पर पड़ना तय है.
बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो, यूपी की पूर्व सीएम, दलितों के बीच में लिविंग लीजेंड बन चुकीं तेज तर्रार नेता मायावती ने एक साल के भीतर अपने भतीजे आकाश आनंद की कम से कम 2 बार ताजपोशी की तो कम से 2 बार बहुत बुरे तरीके से नजर से उतार भी दिया. पर जैसा कि घर के बड़े बुजुर्ग करते हैं, उन्होंने कभी आकाश को पार्टी (घर) से बाहर का रास्ता नहीं दिखाया. आकाश आनंद को बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय समन्वयक और उत्तराधिकारी के पद से हटाकर, और यह स्पष्ट करते हुए कि वह जब तक जीवित रहेंगी, पार्टी के मामलों को स्वयं संभालेंगी, बीएसपी अध्यक्ष मायावती ने रविवार को अपने पार्टी सहयोगियों को एक सख्त संदेश दिया. लेकिन यह कदम ऐसे समय लिया गया जब पार्टी अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है. किसी भी दल में अगर टॉप लीडरशिप के बीच इस तरह का झगड़ा आपस में चल रहा होता है तो जाहिर है कि यह टॉप लीडरशिप के कमजोर पड़ने की ओर इशारा कर रहा है. वैसे भी पिछले कई चुनावों में पार्टी की जो दुर्गति हुई है वह बहुजन समाज पार्टी के लगातार कमजोर होने के ही लक्षण हैं.
1-क्या परिवारवाद के आरोपों से बचने के लिए ऐसा किया
आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के नेता और सांसद चंद्रशेखर आजाद अकसर एक बात दुहराते हैं कि बाबा साहेब ने कहा था पहले रानी के पेट से ही राजा जन्म लेता था, लेकिन मैंने अब यह व्यवस्था की है कि राजा अब रानी के पेट से नहीं, मतदान पेटी से पैदा होगा. 2019 में आकाश आनंद को बीएसपी का राष्ट्रीय समन्वयक बनाने और अपने भाई आनंद कुमार (जो आकाश के पिता हैं) को बीएसपी का उपाध्यक्ष नियुक्त करने के बाद, मायावती पर परिवारवाद के आरोप लगे थे. यह आलोचना न केवल पार्टी के भीतर से बल्कि विरोधी दलों से भी आई थी. जाहिर है कि कहीं न कहीं यह आरोप मायावती को परेशान करता है . बीएसपी अध्यक्ष शायद अपने समर्थकों को यह दिखाना चाहती हैं कि पार्टी संगठन और वह बहुजन आंदोलन, जिसका वह नेतृत्व करने का दावा करती हैं, सर्वोच्च हैं, और यहां तक कि उनका परिवार भी इससे ऊपर नहीं है.
आकाश पर कार्रवाई और इससे पहले अशोक सिद्धार्थ को निष्कासित करते समय मायावती ने बार-बार अपने गुरु और पार्टी के संस्थापक कांशीराम की विरासत का हवाला दिया. मायावती ने कहा कि कांशीराम ने भी एक बार पंजाब चुनाव के दौरान अपनी बहन और भतीजी के खिलाफ कड़ा कदम उठाया था. पर मायावती आकाश आनंद पर एक्शन लेकर भी परिवारवाद के आरोपों से मुक्त नहीं हो सकती हैं क्योंकि उन्होंने आकाश की जगह फिर से अपने भाई आनंद कुमार (आकाश के पिता) को बागडोर सौंप दी है. कांशीराम ने मायावती के अंदर लीडरशिप देखकर ही उन्हें पार्टी का सारा दारोमदार सौंप दिया था. शायद यही कारण है कि कांशीराम के न रहने के बाद भी बीएसपी फलती फूलती रही. पर मायावती के चश्मे में अभी भी परिवार से आगे देखने की क्षमता नहीं पैदा हो रही है.यही कारण पार्टी की स्थिति दिन प्रतिदिन बदतर होती जा रही है.
2-क्या बीएसपी में उत्तराधिकार की लड़ाई खत्म करने की कोशिश है?
बीएसपी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि अंततः मायावती को यह कदम इसलिए उठाना पड़ा क्योंकि पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेता आकाश की पार्टी में बढ़ती भूमिका से असहज थे.राजनीतिक गलियारों में ये बातें कहीं जा रही हैं कि अशोक सिद्धार्थ की वजह से आकाश आनंद के छोटे भाई ईशान आनंद अलग थलग पड़ रहे थे. पार्टी में ससुर-दामाद प्रभावी हो रहे थे.मायावती को ये बर्दाश्त नहीं हुआ. आकाश आनंद के ससुर अशोक सिद्धार्थ जो कभी मायावती के भरोसेमंद हुआ करते थे पहले उनको किनारे किया गया और अब आकाश आनंद को भी वहीं पहुंचा दिया गया है.
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