आंबेडकर जब यौन शिक्षा से जुड़ा एक केस हार गए थे
BBC
इस केस में पत्रिका के मालिक पर पाठकों के यौन जीवन पर पूछे सवाल के जवाब में अश्लीलता फैलाने का आरोप था.
"अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" आज एक चर्चा और बहस का मुद्दा बन गया है. 1934 में भी कुछ ऐसी ही स्थिति थी. तब डॉ. बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने बतौर वकील एक ऐतिहासिक केस लड़ा था.
अदालत में आंबेडकर के व्यक्त किए गए विचार आज की तारीख़ में भी लागू होते हैं. यह "समाज स्वास्थ्य" नामक एक पत्रिका के लिए लड़ा गया मुक़दमा था.
20वीं सदी की शुरुआत में महाराष्ट्र के रघुनाथ धोंडो कर्वे अपनी पत्रिका "समाज स्वास्थ्य" के लिए रूढ़िवादियों के निशाने पर रहते थे. कर्वे अपनी पत्रिका में यौन शिक्षा, परिवार नियोजन, नग्नता, नैतिकता जैसे उन विषयों पर लिखा करते थे जिस पर भारतीय समाज में खुले तौर पर चर्चा नहीं हुआ करती थी.
स्वस्थ यौन जीवन और इसके लिए चिकित्सा सलाह पर केंद्रित उनकी पत्रिका में कर्वे ने इस संवेदनशील मुद्दे पर निडरता पूर्वक चर्चा की. वो तर्कसंगत और वैज्ञानिक बातें लिखते.
लोगों की आम ज़िंदगी पर अत्यधिक धार्मिक प्रभाव वाले समाज के रूढ़िवादियों को उनके लेख से बेहद चिढ़ थी. इस दौरान उनके कई दुश्मन बन गये. लेकिन कर्वे निराश नहीं हुए.