अविवाहित साथ रहने और समलैंगिक संबंधों को भी परिवार कहा जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट
The Wire
सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा कि क़ानून और समाज दोनों में ‘परिवार’ की अवधारणा की प्रमुख समझ है कि यह माता-पिता और उनके बच्चों के साथ एक एकल, अपरिवर्तनीय इकाई है. हालांकि कई परिस्थितियां हैं जो किसी के पारिवारिक ढांचे में बदलाव ला सकती हैं और उन्हें भी क़ानून के तहत सुरक्षा मिलनी चाहिए.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पारिवारिक संबंध घरेलू, अविवाहित सहजीवन या समलैंगिक रिश्ते के रूप में भी हो सकते हैं. साथ ही अदालत ने उल्लेख किया कि एक इकाई के तौर पर परिवार की ‘असामान्य’ अभिव्यक्ति उतनी ही वास्तविक है जितनी कि परिवार को लेकर पारंपरिक व्यवस्था, तथा यह भी कानून के तहत सुरक्षा का हकदार है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि कानून और समाज दोनों में ‘परिवार’ की अवधारणा की प्रमुख समझ यह है कि ‘इसमें एक मां और एक पिता (जो संबंध समय के साथ स्थिर रहते हैं) और उनके बच्चों के साथ एक एकल, अपरिवर्तनीय इकाई होती है.’
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने एक आदेश में कहा, ‘यह धारणा दोनों की उपेक्षा करती है, कई परिस्थितियां जो किसी के पारिवारिक ढांचे में बदलाव ला सकती हैं, और यह तथ्य कि कई परिवार इस अपेक्षा के अनुरूप नहीं हैं. पारिवारिक संबंध घरेलू, अविवाहित सहजीवन या समलैंगिक संबंधों का रूप ले सकते हैं.’ आदेश की प्रति रविवार को अपलोड की गई.
शीर्ष अदालत की टिप्पणियां महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि कार्यकर्ता 2018 में समलैंगिकता को शीर्ष अदालत द्वारा अपराध की श्रेणी से बाहर करने के बाद एलजीबीटी के लोगों के विवाह और ‘सिविल यूनियन’ को मान्यता देने के साथ-साथ लिव-इन जोड़ों को गोद लेने की अनुमति देने के मुद्दे को उठा रहे हैं.