![अमेज़ॉन पर हमला और राष्ट्रीय मौद्रिकरण पर चुप्पी संघ परिवार के अंतर्विरोध को उजागर करती है](http://thewirehindi.com/wp-content/uploads/2021/10/Swadeshi-Jagran-Manch-Protest-against-Walmart-PTI.jpeg)
अमेज़ॉन पर हमला और राष्ट्रीय मौद्रिकरण पर चुप्पी संघ परिवार के अंतर्विरोध को उजागर करती है
The Wire
अगर महज़ दो फीसदी बाज़ार हिस्सेदारी वाले अमेज़ॉन को ईस्ट इंडिया कंपनी 2.0 कहा जा सकता है, तो फिर केंद्र सरकार को क्या कहा जाए जो एक तरफ सरकारी एकाधिकार रहे जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन और लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन की बिक्री के लिए विदेशी पूंजी को दावत दे रही है, दूसरी तरफ ऊर्जा और रेलवे जैसे रणनीतिक क्षेत्र में थोक भाव से निजीकरण को बढ़ावा दे रही है?
भारतीय दिग्गज आईटी कंपनी इंफोसिस पर भारत के हितों के खिलाफ काम करने का आरोप लगाने के बाद भारतीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मुखपत्र पांचजन्य ने अमेजॉन को ईस्ट इंडिया कंपनी 2.0 करार दिया है जिसका इरादा भारत के खुदरा बाजार पर एकाधिकार कायम करने का है और उसके कदम भारत के नागरिकों के आर्थिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर कब्जा जमाने वाले हैं.’ आरोप है कि अमेजॉन ने भारत में अपना कारोबार बढ़ाने के लिए 1.2 अरब अमेरिकी डॉलर कानूनी फीस या कथित घूस के तौर पर खर्च किए. अमेरिकी अधिकारी इसकी जांच कर रहे हैं.
संघ से संबद्ध स्वदेशी जागरण मंच ने भी यह कहा है कि अमेजॉन जैसी ई-कॉमर्स दिग्गज कंपनियां छोटे कारोबारियों और किराना दुकानों को नुकसान पहुंचाएंगीं. लेकिन हकीकत यह है कि रिलायंस और टाटा भी इस क्षेत्र मे सक्रिय हैं (जियो मार्ट और बिग बास्केट) टाटा भारत में एक बड़े ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के निर्माण के लिए वॉलमार्ट के साथ हाथ मिलाने के लिए प्रयासरत है.
अगर किराना दुकानों को अमेजॉन से नुकसान पहुंचेगा तो जियो मार्ट, बिग बास्केट और टाटा वालमार्ट से भी इन्हें नुकसान पहुंचेगा. सिर्फ अमेजॉन पर निशाना साधकर संघ परिवार से संबंधित पांजजन्य और स्वदेशी जागरण मंच परोक्ष तौर पर घरेलू कारोबारी एकाधिकारवादी कंपनियों के ई-कॉमर्स परियोजनाओं की मदद कर रहा है. इससे छोटे किराना दुकानों को बचाया नहीं जा सकेगा, जिसकी रक्षा करने का दावा संघ परिवार कर रहा है.
संघ परिवार के ढांचे के भीतर जिस तरह से इस मुद्दे उठाया गया है, उसमें एक नीतिगत अंतर्विरोध साफ झलकता है. इनमें से कुछ सेवा क्षेत्र में व्यापार और निवेश की आपसदारी के डब्ल्यूटीओ नियमों पर संभवतः खरे नहीं उतर पाएंगे. ये चीन, जिसके ई-कॉमर्स निवेश से भारत किनारा कर रहा है, के जवाब में विकसित हो रहे भारत-अमेरिका द्विपक्षीय आर्थिक साझेदारी के भी खिलाफ जा सकता है.