अमिताभ बच्चन की झुंड में बाबा साहेब आंबेडकर से जुड़े राजनीतिक मायने
BBC
फ़िल्म देखते हुए लगा कि मानो 1975 की दीवार वाला विजय यानी अमिताभ बच्चन 2022 में भी विजय बनकर दीवारें तोड़ने की ही कोशिश में लगा हुआ है, पढ़िए पूरा लेख.
"ये समाज के बहिष्कृत लोग हैं. आप कहते हैं कि ये झुंड है, मैं कहता हूँ कि ये हमारी राष्ट्रीय फ़ुटबॉल टीम है." नागपुर की झोंपड़पट्टी के एक लड़के के लिए अदालत में जिरह करते हुए कोच विजय बोराड़े ( अमिताभ बच्चन) की आँखें नम हो जाती हैं.
झुग्गी बस्ती में पला बड़ा ये दलित लड़का नशा, अपराध, चाकूबाज़ी सब कर चुका है. उसकी जाति ने उसे ज़िंदगी के कई मौकों से दूर रखा है. लेकिन अब उसे मौका मिला है ज़िंदगी की बाज़ी पलटने का जब उसका चयन स्लम फ़ुटबॉल वर्ल्ड कप में हुआ है. लेकिन अतीत में जुर्म की दुनिया का साया उसके आज पर हावी है. अदालत में ये अपील उसकी आख़िरी उम्मीद है.
निर्देशक नागराज मंजुले की हाल ही में आई फ़िल्म झुंड ऐसे ही बस्ती के कुछ बच्चों की कहानी है. साथ ही कहानी है एक जुनूनी कोच के बारे में जिसे लगता है कि फ़ुटबॉल के ज़रिए इन बच्चों की किस्मत बदली जा सकती है जिसके लोग नशेड़ी और गंजेड़ी कह कर बुलाते हैं.
लेकिन इस सबसे परे झुंड उस 'बहिष्कृत भारत' की भी कहानी है जिसका ज़िक्र अमिताभ बच्चन कोर्ट में करते हैं.
ये कहानी है उस दीवार की जो बस्ती के इन बच्चों को पास के एलीट कॉलेज कैंपस से अलग करती है... और दास्तां है उस अदृश्य दीवार की भी जो समाज के वंचित लोगों को समाज से जुदा करती है.. दीवार जो है तो पर दिखती नहीं है.