अब CM सिद्धारमैया भी थामेंगे 'सेंगोल', शीर्ष पर लगी है पेरियार की मूर्ति
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कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया को आज शाम को 'मक्कल समुघा निधि परवई' के लोग एक सेंगोल उपहार में देंगे. वे लोग चाहते हैं कि सीएम लोकतंत्र में सामाजिक न्याय को बचाएं. इससे पहले 28 मई को नए संसद भवन के उद्घाटन पर अधीनम महंतों ने पीएम नरेंद्र मोदी सेंगोल भेंट किया था, जिसे नई संसद में ही स्थापित कर दिया गया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मई नए संसद भवन के उद्घाटन के मौके पर मई में 21 अधीनम महंतों ने पवित्र राजदंड 'सेंगोल' सौंपा था. अब कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया को पेरियार की मूर्ति के साथ एक सेंगोल उपहार में दिया जाएगा. तमिलनाडु के मदुरै से 'मक्कल समुघा निधि परवई' (पीपुल्स सोशल जस्टिस काउंसिल) शनिवार शाम करीब 6 बजे को बेंगलुरु में सीएम ऑफिस में सिद्धारमैया को सेंगोल भेंट करेगी. हालांकि इससे जुड़ा कार्यक्रम सुबह 11 बजे से ही शुरू हो जाएगा. समुघा निधि परवाई के अध्यक्ष मनोहरन और गणेशन समेत 30 से ज्यादा लोग सीएम को गोल्ड प्लेटेड सेंगोल भेंट करेंगे. ये लोग चाहते हैं कि सीएम लोकतंत्र में सामाजिक न्याय को बचाएं.
सेंगोल पर पेरियार की आकृति बनी है. ईवी रामास्वामी यानी पेरियार को ‘एशिया का सुकरात’ कहा जाता था. वे दक्षिण भारत के दिग्गज नेता थे. 1879 में उनका जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ था. उन्होंने जीवनभर हिंदू धर्म की कुरीतियोंसे बाल विवाह, देवदासी प्रथा का विरोध किया. उन्होंने महिलाओं और दलितों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई थी. उन्होंने 1924 में केरल के मंदिरों में दलितों की एंट्री के लिए आंदोलन किया. उन्होंने तमिलनाडु में हिंदी थोपे जाने के खिलाफ आंदोलन चलाया. उन्होंने हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों के खिलाफ आंदोलन चलाया था. इस दौरान कई मूर्तियों को खंडित किया गया था. उन्होंने ‘आत्म सम्मान आन्दोलन’ या ‘द्रविड़ आन्दोलन’ शुरू किया था. वह ब्राह्मणवाद के विरोधी थे. उन्होंने हिंदू धर्मग्रंथों को जला दिया था. वह हिंदू वर्ण व्यवस्था के विरोधी थी.
सेंगोल को और खंगालें तो कई अलग-अलग रिपोर्ट में इसकी उत्पत्ति तमिल तमिल शब्द 'सेम्मई' से बताई गई है. सेम्मई का अर्थ है 'नीतिपरायणता', यानि सेंगोल को धारण करने वाले पर यह विश्वास किया जाता है कि वह नीतियों का पालन करेगा. यही राजदंड कहलाता था, जो राजा को न्याय सम्मत दंड देने का अधिकारी बनाता था. ऐतिहासिक परंपरा के अनुसार, राज्याभिषेक के समय, राजा के गुरु के नए शासक को औपचारिक तोर पर राजदंड उन्हें सौंपा करते थे.
डॉ. पद्मा सुब्रह्मण्यम ने बताया, 'यह तमिल में एक लेख था जो तुगलक पत्रिका में प्रकाशित हुआ था. सेंगोल के बारे में आर्टिकल का जो कंटेंट था, उससे मैं बहुत प्रभावित हुई. इसमें लिखा था कि कैसे चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती ने अपने शिष्य डॉ. सुब्रमण्यम को सेंगोल (1978 में) के बारे में बताया, जिन्होंने इसका जिक्र अपनी किताबों में किया था.'
उन्होंने बताया, 'तमिल संस्कृति में सेंगोल का बहुत महत्व है. सेंगोल शक्ति, न्याय का प्रतीक है. यह सिर्फ 1,000 साल पहले की कोई चीज नहीं है. चेर राजाओं के संबंध में तमिल महाकाव्य में भी इसका उल्लेख है.' स्वर्ण राजदंड का पता लगाने में उनकी रुचि कैसे हुई? इस सवाल का जवाब देते हुए डॉ. पद्मा सुब्रह्मण्यम ने बताया, 'मुझे यह जानने में दिलचस्पी थी कि यह सेंगोल कहां है. पत्रिका के लेख में बताया गया था कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को जो सेंगोल भेंट किया गया था वह पंडित जी की जन्मस्थली आनंद भवन में रखा गया है. यह वहां कैसे गया और नेहरू और सेंगोल के बीच क्या संबंध थे, यह भी बहुत दिलचस्प है.'
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