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अब तक पंजाबियों के हाथ में थी कनाडाई राजनीति की डोर, अब गुजराती भी मैदान में, क्या कमजोर पड़ेगा इससे चरमपंथी आंदोलन?

अब तक पंजाबियों के हाथ में थी कनाडाई राजनीति की डोर, अब गुजराती भी मैदान में, क्या कमजोर पड़ेगा इससे चरमपंथी आंदोलन?

AajTak
Thursday, April 10, 2025 6:12 AM GMT

कनाडा की राजनीति में पंजाबी काफी ताकतवर रहे. अब इसमें गुजराती भी हिस्सेदारी करने जा रहे हैं. महीने के आखिर में होने वाले आम चुनाव में गुजराती मूल के चार उम्मीदवार शामिल होंगे. लेकिन ये कौन हैं, और क्या पंजाबियों की तरह कनाडाई पॉलिसी मेकिंग में सेंध लगा सकेंगे?

कनाडा में अक्टूबर में होने वाले आम चुनाव अब अप्रैल के आखिर में होंगे. लिबरल पार्टी के नेता और पीएम मार्क कार्नी ने यह बदलाव कथित तौर पर डोनाल्ड ट्रंप की वजह से डगमगाई व्यवस्था को संभालने के लिए किया. खास बात ये है कि इलेक्शन में पहली बार गुजराती उम्मीदवार भी उतरे हैं. सवाल ये है कि कनाडाई पॉलिटिक्स में नए-नवेलों के लिए कितनी गुंजाइश है? क्या उनके पास पहले से ही बड़ा वोट बैंक है, जो महीने के अंत में उनकी मदद करेगा?

कौन से गुजराती कैंडिडेट  इनमें दो पार्टी की तरफ से, जबकि दो निर्दलीय प्रत्याशी हैं. जयेश ब्रह्मभट्ट साल 2001 में भारत से कनाडा आए थे. पेशे से सिविल इंजीनियर ये शख्स अब रियल एस्टेट कारोबारी हो चुका. वे पीपल्स पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं. 

संजीव रावल लिबरल पार्टी की तरफ से इलेक्शन लड़ेंगे. तंजानिया में जन्मे संजीव 20 सालों से भी ज्यादा वक्त से कनाडा में हैं और उनके कई स्टोर हैं. रावल कनाडा में रहते मिडिल क्लास भारतीयों से जुड़े हैं और उनके लिए कई वादे करते रहे. 

अशोक पटेल और मिनेश पटेल दोनों ही व्यापारी हैं और स्वतंत्र रूप से इलेक्शन में शामिल होंगे. ये सामाजिक सरोकारों से जुड़े रहे लेकिन राजनीति में यह दोनों का पहला कदम है. 

पहले से ही रहा मजबूत

इनका चुनाव मैदान में उतरना कनाडाई राजनीति को करीब से देख रहे लोगों को चौंकाता नहीं. दरअसल, इस देश में एक लाख से ज्यादा गुजराती हैं, जिनमें ज्यादातर लोग सफल कारोबारी हैं. ये समुदाय टोरंटो, ओटावा , वैंकूवर और कैलगरी के साथ-साथ लगभग पूरे कनाडा में फैला हुआ है. बहुत से लोग काम के लिए यहां आते रहे, जबकि बड़ी संख्या गुजराती स्टूडेंट्स की भी है, जो कनाडा में सैटल हो चुके. पंजाबियों के बाद ये दूसरी बड़ी कम्युनिटी है. साल 2016 के बाद से ये समुदाय कनाडा में तीसरी सबसे बड़ी भारतीय भाषा के तौर पर उभरा. पहले नंबर पर पंजाबी और फिर हिंदी है. 

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