
अब तक पंजाबियों के हाथ में थी कनाडाई राजनीति की डोर, अब गुजराती भी मैदान में, क्या कमजोर पड़ेगा इससे चरमपंथी आंदोलन?
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कनाडा की राजनीति में पंजाबी काफी ताकतवर रहे. अब इसमें गुजराती भी हिस्सेदारी करने जा रहे हैं. महीने के आखिर में होने वाले आम चुनाव में गुजराती मूल के चार उम्मीदवार शामिल होंगे. लेकिन ये कौन हैं, और क्या पंजाबियों की तरह कनाडाई पॉलिसी मेकिंग में सेंध लगा सकेंगे?
कनाडा में अक्टूबर में होने वाले आम चुनाव अब अप्रैल के आखिर में होंगे. लिबरल पार्टी के नेता और पीएम मार्क कार्नी ने यह बदलाव कथित तौर पर डोनाल्ड ट्रंप की वजह से डगमगाई व्यवस्था को संभालने के लिए किया. खास बात ये है कि इलेक्शन में पहली बार गुजराती उम्मीदवार भी उतरे हैं. सवाल ये है कि कनाडाई पॉलिटिक्स में नए-नवेलों के लिए कितनी गुंजाइश है? क्या उनके पास पहले से ही बड़ा वोट बैंक है, जो महीने के अंत में उनकी मदद करेगा?
कौन से गुजराती कैंडिडेट इनमें दो पार्टी की तरफ से, जबकि दो निर्दलीय प्रत्याशी हैं. जयेश ब्रह्मभट्ट साल 2001 में भारत से कनाडा आए थे. पेशे से सिविल इंजीनियर ये शख्स अब रियल एस्टेट कारोबारी हो चुका. वे पीपल्स पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं.
संजीव रावल लिबरल पार्टी की तरफ से इलेक्शन लड़ेंगे. तंजानिया में जन्मे संजीव 20 सालों से भी ज्यादा वक्त से कनाडा में हैं और उनके कई स्टोर हैं. रावल कनाडा में रहते मिडिल क्लास भारतीयों से जुड़े हैं और उनके लिए कई वादे करते रहे.
अशोक पटेल और मिनेश पटेल दोनों ही व्यापारी हैं और स्वतंत्र रूप से इलेक्शन में शामिल होंगे. ये सामाजिक सरोकारों से जुड़े रहे लेकिन राजनीति में यह दोनों का पहला कदम है.
पहले से ही रहा मजबूत
इनका चुनाव मैदान में उतरना कनाडाई राजनीति को करीब से देख रहे लोगों को चौंकाता नहीं. दरअसल, इस देश में एक लाख से ज्यादा गुजराती हैं, जिनमें ज्यादातर लोग सफल कारोबारी हैं. ये समुदाय टोरंटो, ओटावा , वैंकूवर और कैलगरी के साथ-साथ लगभग पूरे कनाडा में फैला हुआ है. बहुत से लोग काम के लिए यहां आते रहे, जबकि बड़ी संख्या गुजराती स्टूडेंट्स की भी है, जो कनाडा में सैटल हो चुके. पंजाबियों के बाद ये दूसरी बड़ी कम्युनिटी है. साल 2016 के बाद से ये समुदाय कनाडा में तीसरी सबसे बड़ी भारतीय भाषा के तौर पर उभरा. पहले नंबर पर पंजाबी और फिर हिंदी है.

Defense Minister Rajnath Singh met with his Chinese counterpart. In this meeting, Rajnath Singh raised the issue of Pakistan-sponsored terrorism. He made it clear that India now has a single principle against terrorism. The Defense Minister also discussed border dispute issues with the Chinese Defense Minister. This was the first time that India's Defense Minister was on Chinese soil since the Galwan incident.

पाकिस्तान ने स्वीकार कर लिया है कि भारत के खिलाफ जंग में उसे चीन की ओर से मदद मिली थी. एक इंटरव्यू के दौरान पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने ये बात स्वीकार ली है. इस दौरान उन्होंने चीन को एक सच्चा दोस्त भी बताया है. वहीं, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने दावा किया है कि पाक की वजह से ईरान और इजरायल के बीच जंग रुकी है.

पाकिस्तान भारत से बातचीत की गुहार लगा रहा है, जिसका कारण पानी का मुद्दा बताया गया है. भारत ने स्पष्ट किया है कि आतंकवाद खत्म होने तक बातचीत संभव नहीं है. पाकिस्तान ने यह भी दावा किया कि उसने इजराइल और ईरान के बीच युद्ध रुकवाया, और यह भी स्वीकार किया गया कि भारत के साथ युद्ध के दौरान चीन ने अपने सैटेलाइट से पाकिस्तान की मदद की थी.

डोनाल्ड ट्रंप को खुद को बहुत बड़ा खिलाड़ी समझ रहे थे. लेकिन, ईरान-इजरायल में उलटे पड़ते उनके पैंतरों से साबित होता जा रहा है कि उन्हें खुद खुद अंदाजा नहीं होता है कि उनके फैसलों का भविष्य क्या होगा. अमेरिका में 60% जनता मध्य पूर्व में युद्ध के उनके फैसले के खिलाफ थी. अब सीजफायर के बाद ईरान के सुप्रीम लीडर खामेनेई उनकी लू उतार रहे हैं.

ईरान पर अमेरिका के बंकर बस्टर बमों से हमले का आखिर कितना नुकसान हुआ...ये सवाल अमेरिका में बड़े बवाल की वजह बन गया है..अमेरिकी मी़डिया में लगातार सवाल उठ रहे हैं..डिफेंस इंटेलीजेंस की एक रिपोर्ट का हवाला दिया जा रहा है और ट्रंप प्रशासन को बार-बार सफाई देनी पड रही..ट्रंप नाटो की बैठक में भाग लेने गए तो वहां भी उन्हें ये दावा करना पड़ा कि ईरान के परमाणु केंद्रों का नामोनिशान मिटा दिया गया है.