अब्दुल्ला सरकार में दबदबा कम लेकिन कश्मीर की सरकार कांग्रेस के लिए नॉर्थ में तलवार की धार!
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जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति हटाने से संबंधित नोटिफिकेशन जारी होने के साथ ही केंद्र शासित प्रदेश में सरकार गठन का रास्ता साफ हो गया है. नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस, सीपीएम विधायकों की बैठक में उमर अब्दुल्ला को विधायक दल का नेता चुन भी लिया गया है. कश्मीर की सरकार कांग्रेस के लिए नॉर्थ में क्या तलवार की धार की तरह है?
राज्य से केंद्र शासित प्रदेश बने जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव के बाद सरकार गठन का रास्ता साफ हो गया है. केंद्र ने जम्मू कश्मीर में लागू राष्ट्रपति शासन हटाने की अधिसूचना जारी कर दी है जिसमें यह कहा गया है कि नई सरकार के गठन से ठीक पहले यह समाप्त हो जाएगा. उमर अब्दुल्ला को नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के गठबंधन का नया नेता चुन लिया गया है और वे 16 अक्टूबर को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. उमर सरकार के कार्यकाल का अभी आगाज भी नहीं हुआ है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस की गठबंधन सहयोगी कांग्रेस में हलचल बढ़ गई है.
कांग्रेस के जम्मू रीजन के नेताओं ने बैठक कर हार के कारणों और अपने सियासी भविष्य को लेकर मंथन किया है. इस रीजन के कई नेताओं ने चुनाव से पहले नेशनल कॉन्फ्रेंस से गठबंधन का भी विरोध किया था. सवाल है कि जम्मू कांग्रेस के नेताओं के एनसी से गठबंधन का विरोध करने, सियासी भविष्य की चिंता के पीछे क्या कारण हैं? जम्मू कश्मीर में गठबंधन सरकार में शामिल होने जा रही कांग्रेस के नेताओं को खुशी से अधिक चिंता सता रही है तो उसके भी अपने कारण हैं.
कांग्रेस के जम्मू कश्मीर में छह विधायक हैं. 42 सीटों के साथ नेशनल कॉन्फ्रेंस सबसे बड़ी पार्टी है. एक विधायक सीपीएम का भी है. संख्याबल के लिहाज से देखें तो कांग्रेस की हिस्सेदारी एक बटे सात की है और सरकार में पार्टी का दबदबा रहेगा, ऐसा लगता नहीं है. चार निर्दलीय विधायक भी अब्दुल्ला सरकार के समर्थन का ऐलान पहले ही कर चुके हैं. ऐसे में बगैर कांग्रेस के भी अगली सरकार नंबर गेम में 47 तक पहुंच जा रही है जो पूर्ण बहुमत के लिए जरूरी 48 के आंकड़े से महज एक कम है. कांग्रेस के लिए कश्मीर की सरकार तलवार की धार कैसे है? इसे चार पॉइंट में समझा जा सकता है.
1- नेशनल कॉन्फ्रेंस का घाटी, कांग्रेस का जम्मू पर फोकस
एक बड़ी वजह दोनों गठबंधन सहयोगियों का अलग-अलग फोकस एरिया है. नेशनल कॉन्फ्रेंस का फोकस एरिया जहां कश्मीर घाटी की सियासत है तो वहीं कांग्रेस का जम्मू रीजन. कांग्रेस जम्मू रीजन में बीजेपी के उभार से पहले मजबूत प्रभाव रखती आई है. अब इसे इस नजरिये से तो ठीक कहा जा सकता है कि दोनों ही गठबंधन सहयोगियों के बीच पहले से ही विभाजन की लकीर है कि ये रीजन तुम्हारा, वो रीजन तुम्हारा. लेकिन असली मुश्किल दोनों रीजन का अलग मिजाज है. घाटी का जनमत लोकल पार्टियों के साथ रहता है तो वहीं जम्मू का राष्ट्रीय पार्टियों के साथ. अब्दुल्ला सरकार का कामकाज घाटी फोकस्ड रहा तो कांग्रेस को जम्मू रीजन में इसका और अधिक नुकसान उठाना पड़ सकता है.
2- सेंटीमेंट पॉलिटिक्स की पिच पर कांग्रेस को नुकसान
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