अफ़ग़ानिस्तान: वफ़ादारी की वो कसम, जिससे बंधे हैं अल-क़ायदा और तालिबान
BBC
क्या है वो क़सम, जिससे 20 साल से भी अधिक समय से बंधे हैं तालिबान और अल-क़ायदा. और क्या है दोनों समूहों के बीच जटिल संबंधों का इतिहास.
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की सत्ता में वापसी से एक अहम सवाल फिर उठने लगा है कि उनके अल-क़ायदा के साथ के संबंध किस तरह के हैं. अल-क़ायदा अपने 'बे'अह' (निष्ठा की शपथ) की वजह से तालिबान से जुड़ा हुआ है. पहली बार यह 1990 के दशक में ओसामा बिन लादेन ने तालिबान के अपने समकक्ष मुल्लाह उमर से यह 'कसम' ली थी. उसके बाद यह शपथ कई बार दोहराई गई, हालाँकि तालिबान ने इसे हमेशा सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं किया है. तालिबान अमेरिका के साथ 2020 के शांति समझौते में इस बात पर सहमत हुआ था कि वो अल-क़ायदा या किसी और चरमपंथी गुट को अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों में काम करने देने की अनुमति नहीं देगा. 15 अगस्त को काबुल पर नियंत्रण के कुछ दिनों बाद उन्होंने अपने इस वचन को दोहराया भी था.More Related News