अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान: पाकिस्तान में कहीं मिठाइयाँ बँटी, तो कहीं चिंता भी
BBC
तालिबान के अफ़ग़ानिस्तान का नियंत्रण अपने हाथ में लेने के बाद पाकिस्तान में अलग-अलग तबके क्या सोच रहे हैं?
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान का नियंत्रण हो जाने के बाद दक्षिण एशिया में फिर से राजनीतिक अनिश्चितता के बादल छा गए हैं. तालिबान के वहाँ के राष्ट्रपति भवन में प्रवेश करते ही अफ़ग़ान सुरक्षा बलों के प्रशिक्षण और साजो-सामान पर अमेरिका और उसके सहयोगियों के ख़र्च किए गए अरबों डॉलर बेकार हो गए. काबुल का भी पतन होता देखने वाले अफ़ग़ानिस्तान के पड़ोसी अब सोच रहे हैं कि इसके बाद उनका क्या होगा. पाकिस्तान की बात करें, तो वहाँ बड़ी तादाद में अफ़ग़ान शरणार्थी रहते हैं. तालिबान के साथ पाकिस्तान के बड़े जटिल संबंध रहे हैं. वास्तव में, 90 के दशक की शुरुआत में तालिबान को बढ़ाने में पाकिस्तान ने प्रमुख भूमिका निभाई थी. पाकिस्तान के एक अख़बार ट्रिब्यून ने लिखा है कि वहाँ के सिविल और सैन्य नेतृत्व ने अफ़ग़ानिस्तान के मामले में 'देखो और इंतज़ार करो' का नज़रिया अपनाया है. अख़बार ने आधिकारिक सूत्रों के हवाले से कहा है कि वे काबुल में नई सरकार को मान्यता देने के लिए बेताबी नहीं दिखाएँगे. उसने यह भी लिखा कि पाकिस्तान आगे की कार्ययोजना तय करने के लिए चीन, रूस और ईरान जैसे देशों के साथ मिलकर काम करने का निश्चय किया है.More Related News