अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान पर सऊदी अरब की चुप्पी का राज़ क्या?
BBC
अफ़ग़ानिस्तान में काबुल पर तालिबान के क़ब्ज़े के बाद कई देशों ने वहाँ के हालात पर बयान जारी किए हैं. लेकिन तालिबान का पुराना समर्थक सऊदी अरब शांत है. जानिए क्यों?
1996 में जब तालिबान अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर काबिज़ हुआ, तब सऊदी अरब, यूएई और पाकिस्तान- वो तीन देश थे, जिन्होंने सबसे पहले तालिबान को मान्यता दी थी. अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल पर तालिबान के नियंत्रण के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने इस वाकये का ज़िक्र किया और कहा कि उसने ग़ुलामी की जंज़ीरों को तोड़ दिया है. दूसरी ओर यूएई ने अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी को शरण दी है. संयुक्त अरब अमीरात के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर बताया कि उन्होंने ''मानवीय आधार पर राष्ट्रपति ग़नी और उनके परिवार का अपने देश में स्वागत किया है.'' इसके अलावा तालिबान से जुड़ा उनका कोई बड़ा बयान नहीं आया है. सऊदी अरब की सरकार ने इतना ज़रूर कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान से उसके सभी राजनयिक सुरक्षित रियाद लौट आए हैं. सऊदी अरब की सरकारी समाचार एजेंसी सऊदी प्रेस एजेंसी के अनुसार विदेश मंत्रालय ने ये फ़ैसला अफ़ग़ानिस्तान की अस्थिर स्थिति को देखते हुए किया. लेकिन इसके अलावा पूरे मामले पर सऊदी अरब ने चुप्पी साध रखी है.More Related News