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अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका का 'ऑपरेशन साइक्लोन' और तालिबान के बनने की कहानी
BBC
तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रोनल्ड रीगन इस हद तक आगे बढ़ गए थे कि उन्होंने ओवल ऑफ़िस में मुजाहिदीन नेताओं के प्रतिनिधिमंडल की मेज़बानी तक की. रीगन ने अपने भाषण में कहा था, "जंग-ए-आज़ादी के सिपाहियों, आप अकेले नहीं हो. अमेरिका आपका साथ देगा."
अमेरिका में वे लोग 'जंग-ए-आज़ादी के सिपाही' कहे जाते थे. लेकिन उन्हें इस्लामी कट्टरपंथी गुरिल्ला लड़ाके कहना ज़्यादा ठीक रहेगा. अफ़ग़ानिस्तान के स्थानीय गुरिल्ला लड़ाकों के समूहों ने सालों तक अमेरिकी समर्थन के सहारे सोवियत संघ के ख़िलाफ़ झंडा उठाए रखा. अमेरिका ने उन्हें हथियार और पैसे मुहाये कराए ताकि उसके दुश्मन सोवियत संघ के मंसूबों को नाकाम किया जा सके. गोपनीय दस्तावेज़ों, पत्रकारों की जांच-पड़ताल और उस दौर से जुड़े ख़ास लोगों के बयानों और इंटरव्यूज़ को देखें तो ये बात सामने आती है कि अमेरिका सोवियत संघ को ऐसे दलदल में फँसाना चाहता था, जहाँ उसे जानोमाल का वैसा ही नुक़सान हो जो सालों पहले अमेरिका ने ख़ुद वियतमान में झेला था. ये अमेरिका का 'ऑपरेशन साइक्लोन' था और उस वक़्त के मीडिया ने इसे अमेरिकी इंटेलिजेंस एजेंसी 'सीआईए के इतिहास का सबसे बड़ा ख़ुफ़िया अभियान' क़रार दिया था. सोवियत संघ के सैनिकों की वापसी शुरू होने के महज़ आठ साल बाद साल 1996 में तालिबान ने काबुल पर फ़तह हासिल कर ली और अफ़ग़ानिस्तान पर एक इस्लामी कट्टरपंथी निज़ाम थोप दिया गया, जिसकी दुनिया भर में मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर आलोचनाएं होती रही हैं.More Related News