
अफ़ग़ानिस्तान: तालिबान के 100 दिन और बेशुमार चुनौतियां
BBC
तालिबान ने 15 अगस्त को अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्ज़ा किया था और क़रीब दो दशक के बाद अमेरिका और पश्चिमी देशों की सेनाओं की वापसी हुई थी.
किसी देश के हाल को परखने के लिए सौ दिन बहुत ज़्यादा नहीं होते लेकिन अफ़ग़ानिस्तान के लिए बीते सौ दिन बेहद ख़ास रहे हैं.
इस दौरान अफ़ग़ानिस्तान में बहुत कुछ बदल चुका है. राष्ट्रपति अशरफ ग़नी की अगुवाई में चलने वाली सरकार की जगह तालिबान की अंतरिम सरकार ले चुकी है.
दुनिया के किसी देश ने इस सरकार को मान्यता नहीं दी है. महिलाओं के काम करने और लड़कियों की पढ़ाई पर लगाई गई पाबंदी की वजह से अमेरिका समेत पश्चिम देशों ने अफ़ग़ानिस्तान की मदद बंद कर दी है.
संयुक्त राष्ट्र ने आगाह किया है कि अफ़ग़ानिस्तान के 2.2 करोड़ से अधिक लोगों को भूख से बचाने के लिए वर्ल्ड फूड प्रोग्राम (डब्ल्यूएफपी) को अनाज की आपूर्ति बढ़ानी होगी. यदि देश का मौसम उतना ही ख़राब हो जाए, जैसा कि विशेषज्ञ भविष्यवाणी कर रहे हैं, तो अफ़ग़ानिस्तान में गंभीर भुखमरी और अकाल का ख़तरा पैदा होने की आशंका है. दिक्कतें और भी हैं.
पश्चिमी देशों के मदद बंद करने से अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गई है. लाखों की संख्या में अफ़ग़ानिस्तान के नागरिक देश छोड़कर जा चुके हैं. इस्लामिक स्टेट से सुरक्षा के मोर्चे पर लगातार चुनौती मिल रही है.