अन्य फसलों की तुलना में दालों की पैदावार महत्वपूर्ण लाभ दिखाने में विफल क्यों रही है
The Wire
भारत दुनिया में दालों का सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है और शीर्ष आयातक भी है. भारत वैश्विक बाज़ारों से बड़ी मात्रा में दालों और खाद्य तेलों का आयात करता है, जिनका घरेलू स्तर पर आसानी से उत्पादन किया जा सकता है. कम घरेलू उत्पादन के कारण भारत की दालों की आयात मात्रा 9.44 प्रतिशत बढ़कर फसल वर्ष 2021-22 के दौरान लगभग 27 लाख टन हो गई, जो 2020-21 में 24.66 लाख टन थी.
अपर्याप्त आपूर्ति के कारण आम तौर पर खायी जाने वाली दालों (तुअर, मूंग, उरद या मसूर) का बाजार बेहद तंग है, और इनकी कीमतों में लगभग 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. भारत में सबसे अधिक खायी जाने वाली दालों में से एक तुअर या अरहर की कीमत तकरीबन 185 रुपये प्रति किलोग्राम चल रही है, तो वहीं मूंग 249 रुपये, उड़द करीब 115 रुपये और मसूर 160 रुपये प्रति किलो के दर से चल रहे हैं.
लगभग सभी भारतीय, अमीर/गरीब के साथ-साथ शाकाहारी और मांसाहारी, दालों का सेवन करते हैं. प्रति वर्ष लगभग 20 मिलियन टन दालों के साथ भारत दुनिया की लगभग 25 प्रतिशत दालों का उत्पादन करता है.
27 प्रतिशत खपत के साथ भारत दुनिया में दालों का सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है, जो आम लोगों के लिए एक प्राथमिक प्रोटीन स्रोत है. भारत शीर्ष आयातक भी है. कुछ कारक हैं, जो भारतीय दलहन उत्पादन और आयात मांग को प्रभावित करते हैं.
घरेलू स्तर पर दालों की बड़े पैमाने पर खपत के बावजूद अन्य प्रमुख फसलों की तुलना में दालों का उत्पादन अपेक्षाकृत स्थिर रहा है. दालों की पैदावार औसतन अन्य फसलों की तुलना में महत्वपूर्ण लाभ दिखाने में विफल रही है, जिससे अन्य फसलों के सापेक्ष दालों की लाभप्रदता और रोपण प्रभावित हुआ है.