अग्निपथ एक मार्केटिंग झांसा है, जहां नौकरियां ख़त्म करने को रोज़गार सृजन बताया जा रहा है
The Wire
किसी ग़रीब के लिए सैनिक बनना बुनियादी तौर पर दो वक़्त की रोटी से जुड़ा एक वास्तविक और कठोर सवाल है, जो देश की सेवा करने के मध्यवर्गीय रोमांटिक विचार से अलग है.
अग्निपथ योजना को यूं तो युवाओं को भारत माता की सेवा करने का मौका देने वाली देशभक्त रोजगार योजना के तौर पर पेश किया है, लेकिन वास्तव में यह नौकरी देने की नहीं, नौकरी से बाहर निकालने की योजना है, जो भारत के बेरोजगारों को चोट पहुंचाती है और राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ समझौता करती है.
हर साल सेना में होने वाली करीब 40,000 सैनिकों की खुली भर्ती अब से अग्निपथ योजना के तहत की जाएगी. दोनों में बड़ा अंतर यह है कि चार साल के बाद भर्ती किए गए सिर्फ 10000 रंगरूटों को ही सेवा विस्तार दिया जाएगा और बचे हुए 30,000 जवानों को निर्ममता के साथ नौकरी से निकाल दिया जाएगा.
यह योजना राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ भी समझौता करती है, क्योंकि भारतीय सेना बीतते हुए वर्षों के साथ ऐसी सेना पर निर्भर होती जाएगी, जिसमें कम प्रशिक्षित, ठेके पर बहाल किए गए सैनिकों की प्रमुखता होगी. लेकिन इसके बावजूद नौकरी पर कैंची चलाने वाली इस योजना को रोजगार के एक शानदार मौके के तौर पर पेश किया जा रहा है.
और तो और आलम यह है कि विभिन्न सरकारी महकमों में लंबे समय से खाली 10 लाख पदों पर आंशिक भर्तियों को भी नए रोजगार सृजन के तौर पर दिखाया जा रहा है. और दोनों ही घोषणाएं साथ में की गई हैं- कुछ इस तरह से मानो प्रधानमंत्री ने बेरोजगारी के खिलाफ किसी जंग का ऐलान कर दिया है, जबकि दरहकीकत यह नौकरियों पर हमला है.