अगर राहुल गांधी ने उस बिल को न फाड़ा होता तो आज नहीं लटकती सांसदी पर तलवार
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राहुल गांधी को मानहानि मामले में सूरत की सेशन कोर्ट ने दो साल की सजा सुनाई है, जिसके बाद उनकी संसद की सदस्यता पर भी संकट आ गया है. अगर राहुल गांधी ने साल 2013 में यूपीए सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश को नहीं फाड़ा होता तो उनकी सांसदी पर तलवार नहीं लटकती.
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को मानहानि मामले में सूरत की सेशन कोर्ट ने दो साल की सजा सुनाई है. कोर्ट ने राहुल गांधी को जमानत तो दे दी है, लेकिन दो साल की सजा होने की वजह से उनकी संसद की सदस्यता पर संकट गहरा गया है. अगर राहुल गांधी ने आज से 10 साल पहले मनमोहन सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश को न फाड़ा होता तो उनकी सदस्यता पर किसी भी तरह का संकट नहीं होता.
जनप्रतिनिधि कानून के मुताबिक, अगर सांसदों और विधायकों को किसी भी मामले में 2 साल से ज्यादा की सजा हुई है तो उनकी सदस्यता (संसद और विधानसभा) रद्द हो जाएगी. इतना ही नहीं सजा की अवधि पूरी करने के बाद छह साल तक चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे.
क्या था मनमोहन सरकार द्वारा लाया गया अध्यादेश?
साल 2013 के सितंबर महीने में यूपीए सरकार ने एक अध्यादेश पारित किया था. इसका मकसद उसी साल जुलाई महीने में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित एक आदेश को निष्क्रिय करना था, जिसमें अदालत ने कहा था कि दोषी पाए जाने पर सांसदों और विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी जाएगी. कांग्रेस द्वारा इस अध्यादेश को लाए जाने पर बीजेपी, लेफ्ट समेत कई विपक्षी पार्टियों ने कांग्रेस पर जमकर हमला करना शुरू कर दिया.
मनमोहन सरकार पर आरोप लग रहे थे कि वो भ्रष्टाचारियों को बढ़ावा देना चाह रही है, इसलिए इस अध्यादेश को लाया गया है. इसी समय आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव पर भी चारा घोटाले को लेकर अयोग्यता की तलवार लटक रही थी.
कांग्रेस ने की थी प्रेस कॉन्फ्रेंस
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