
'अगर मैं कहूं...' गाने का उस म्यूजिशियन से कनेक्शन, जिसने पॉपुलैरिटी के लिए डेविल से किया अपनी आत्मा का सौदा!
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क्या आप जानते हैं कि 'अगर मैं कहूं' गाने का एक कनेक्शन इंटरनेशनल म्यूजिक के उस आइकॉन से है जिसके बारे में कहा जाता है कि उसने पॉपुलैरिटी के लिए शैतान से अपनी आत्मा का सौदा किया था? है न हैरान करने वाली बात... आपको ये मजेदार किस्सा बताते हैं
मॉडर्न बॉलीवुड के रोमांटिक गीतों में फिल्म 'लक्ष्य' (2004) के गाने 'अगर मैं कहूं...' की पॉपुलैरिटी एक अलग लेवल पर है. इस गाने में शंकर-एहसान-लॉय का शानदार म्यूजिक और बॉलीवुड आइकॉन जावेद अख्तर के लिखे प्यारे लिरिक्स तो हैं ही. साथ में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के दो सबसे खूबसूरत दिखने वाले कलाकार- ऋतिक रोशन और प्रीति जिंटा भी हैं.
गाने के मूड को इन दोनों कलाकारों ने प्यार भरी छेड़खानी के साथ जिस तरह पर्दे पर उतारा वो बॉलीवुड फैन्स को हमेशा याद रहता है. मगर क्या आप जानते हैं कि इस गाने का एक कनेक्शन इंटरनेशनल म्यूजिक के उस आइकॉन से है जिसके बारे में कहा जाता है कि उसने पॉपुलैरिटी के लिए शैतान से अपनी आत्मा का सौदा किया था? है न हैरान करने वाली बात... आपको ये मजेदार किस्सा बताते हैं.
ब्लूज म्यूजिक और ऋतिक-प्रीति का ऑनस्क्रीन रोमांस 'अगर मैं कहूं' गाने में वैसे तो गिटार का बेहतरीन इस्तेमाल है, पर बिल्कुल शुरुआत वाले हिस्से का एक अलग ही जादू है. वो हिस्सा शंकर-एहसान-लॉय तिकड़ी के लॉय मेंडोन्सा ने प्ले किया है. जिस स्टाइल में वो गिटार बज रहा है, वो म्यूजिक का एक बहुत पॉपुलर स्टाइल है जिसे ब्लूज कहा जाता है. गिटार का गहरा स्केल और तारों पर कुछ घिसटने की आवाज वाला पैटर्न, ब्लूज म्यूजिक की एक खास पहचान है.
ब्लूज म्यूजिक में गिटार के कॉर्ड्स और लिरिक्स के स्टाइल की उत्पत्ति को अब रिसर्चर पश्चिमी अफ्रीका से जोड़कर देखने लगे हैं. मगर ब्लूज जिस तरह सुनने वालों में पॉपुलर हुआ, वो अमेरिका के अश्वेत समुदायों की संस्कृति से जुड़ी एक कहानी है.
अमेरिका के देहाती इलाकों से निकला संगीत सुनने वालों ने सबसे पहले ब्लूज म्यूजिक, साउथ अमेरिका के मिसिसिपी इलाके में सुना. मीलों फैले खेत और बागानों वाले इस इलाके को मिसिसिपी डेल्टा भी कहते हैं और इसीलिए ब्लूज म्यूजिक के ऑरिजिनल स्टाइल को डेल्टा ब्लूज भी कहा जाता है. अमेरिका के शहरों से बेहद कटे हुए इन इलाकों को देहात की तरह देखा जाता था. जहां अश्वेत समुदाय के लोग, गोरे जमीन मालिकों के लिए बंटाई पर खेती करते थे या तो खेतों में मजदूर होते थे. इसलिए शुरुआत में ब्लूज म्यूजिक को देहातियों के संगीत के तौर पर भी देखा गया, जिसे अश्वेत लोग अपनी महफिलों में गाते थे.
रिकॉर्ड्स की शक्ल में ब्लूज म्यूजिक 1920s की शुरुआत से ही मिलता है. उस दौर में रेसिज्म की क्या स्थिति थी ये किसी से छुपा नहीं है और ऐसे में रिकॉर्ड कंपनियां भी संगीत को दो कैटेगरी में बांटकर बेचती थीं- रेस म्यूजिक, जो अश्वेतों का संगीत था और हिलिबिली म्यूजिक, वो संगीत जिसका ऑरिजिन गोरों में हुआ. दो कैटेगरी में बांटने की वजह ये थी कि लोग रंगभेद को लेकर बहुत पक्के थे. ऐसे में अश्वेत लोग, अश्वेत लोगों का संगीत खरीद सकें और गोरे, अपने लोगों का इसलिए रिकॉर्ड्स को बांटकर बेचा जाता था.

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