अगर आप आज़ाद सोच रखते हैं, तो उसके नतीजे भी भुगतने ही होंगे: महेश भट्ट
The Wire
इराक़ी पत्रकार मुंतज़र अल ज़ैदी की आत्मकथा ‘द लास्ट सैल्यूट टू प्रेसिडेंट बुश’ पर आधारित, फिल्मकार महेश भट्ट का नाटक ‘द लास्ट सैल्यूट’ अब किताब की शक्ल में सामने आया है. इस पर बात करते हुए भट्ट ने कहा कि कुछ ही लोग होंगे जो हिम्मत करके सच लिखेंगे और कुछ ही लोग होंगे जो थिएटर के ज़रिये इसे पेश करेंगे.
नई दिल्लीः दिग्गज फिल्म निर्देशक महेश भट्ट का कहना है कि ख़बरों का जो पूरा इकोसिस्टम है उसमें ज़हर भर दिया गया है, समझ में नहीं आता कि किसके पास जाएं, और किससे जानें कि सच क्या है?
द वायर को दिए एक साक्षात्कार में महेश भट्ट ने मौजूदा मीडिया-रिपोर्टिंग के हवाले से ये भी कहा, ‘पहले लगता था कि यहां नहीं तो वहां पर देख लेते हैं, लेकिन अब लगता है कि पूरी फ़िज़ा में ही किसी ने ज़हर घोल दिया है.’
उन्होंने ने कहा, ‘अविश्वास का माहौल है, लेकिन हम एंटरटेनमेंट-वर्ल्ड के लोग हैं तो, हमें दावा नहीं है कि हम ही सच्चाई के कस्टोडियन हैं.’
उन्होंने आगे कहा, ‘अगर हमने कभी कुछ बोला है तो उसकी क़ीमत भी चुकाई है, लेकिन हमें इसकी शिकायत नहीं है, धूप में खड़े होंगें तो सन-स्ट्रोक तो होगा ही, हर बात की एक क़ीमत अदा करनी पड़ती है. और अगर आप आज़ाद सोच रखते हैं तो उसके नतीजे भी भुगतने ही होंगे. और आपको इसे ख़ुशदिली से क़ुबूल करना चाहिए.’