
रिपोर्टर डायरी: 'मैं कोविड का अनाथ बालक', सीएम शिवराज सिंह ने 'मामा' बनकर हर मदद का दिया आश्वासन
ABP News
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन बच्चों को अपने निवास पर बुलाया था जिनके मां बाप कोरोना में चल बसे थे. इस दौरान सीएम ने मामा बनकर सभी अनाथ बच्चों को हर तरह की मदद का आश्वासन दिया.
रिपोर्टर डायरी: कैसे कहूं कि मेरा परिचय क्या है, बस ये समझिये कि साल के शुरुआती महीनों में जब कोरोना का कहर बनकर पूरे देश पर छाया तो मेरे सर से भी पहले पिता फिर मां का साया उठ गया और मैं अनाथ हो गया तेरह साल की उम्र में ही. भरी दुनिया में अकेला होना क्या होता है ये मुझे उन दिनों पता चला मगर भला हो मेरे चाचा चाची का जो उन्होंने मुझे अपने साथ रख लिया, अब मैं उनके साथ रह रहा हूं विदिशा में. कुछ दिनों पहले मेरे घर सरकारी विभाग के लोग आये और मेरे चाचा से मुझे भोपाल ले जाने के लिये सहमति मांगी. मैं भी हैरान था कि मुझे भोपाल क्यों जाना है, वहां जाकर क्या करूंगा, फिर बाद में चाचा ने बताया कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन बच्चों को रविवार को अपने घर बुलाया है जो मेरे जैसे हैं यानी कि जिनके मां बाप कोरोना में चल बसे. हम बदनसीब बच्चों को शिवराज क्यों बुलाना चाहते है ये सब मेरे छोटे दिमाग की समझ में नहीं आ रहा था.
रविवार की सुबह हम भोपाल की श्यामला हिल्स में मुख्यमंत्री निवास के सामने थे. सजा हुआ बड़ा सा बंगला जिसमें अंदर घुसते ही दायां तरफ एक बडा पंडाल था. जिसमें आगे छोटा सा मंच फिर उसके सामने बैठने की कुर्सियां और उनके पीछे गोल टेबल लगे थे. किनारे की ओर वैसे ही खाने पीने के स्टॉल थे जैसे हम शादियों के रिसेप्शन में देखते हैं. मुझे आगे की कुर्सियों पर कुछ दूसरे बच्चों के साथ बिठा दिया गया. उस पंडाल में मुझे सब कुछ थोडा अजीब सा लग रहा था. मैं कभी इतने बडी जगह नहीं गया था. थोड़ी देर बैठने के बाद ही वहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आ गये. चश्मा लगाये दुबले पतले पेंट शर्ट पहने मुस्कुराते हुए वह मेरी ही तरफ आ गये. मेरे खडे होने से पहले ही वो पूछने लगे कैसे हो तुम, क्या नाम है तुम्हारा, मैं शिवराज हूं, तुम्हारा मामा. धीमी धीमी आवाज में मेरे जवाबों को सुनकर वो आगे बढ गये, वो सबसे ही ऐसी बात कर रहे थे. उनके साथ उनकी पत्नी भी थीं. वो भी हमारी तरफ प्रेम भरी निगाहों से देख रही थीं. उन्होंने भी मेरे पास आकर नाम पूछा. अब मुझे यहां थोडा अच्छा लगने लगा था क्योंकि मेरे आसपास भी जो बच्चे बैठे थे वो सारे भी मेरी ही तरह थे यानी कि बिना मां बाप वाले. उन सबको देख अब मेरा हौसला बढ़ने लगा था कि कोरोना ने मेरे मम्मी पापा को ही नहीं छीना, ये बुरा वक्त इतने सारे बच्चों पर भी आया है और जब ये सारे प्रसन्न हैं तो मैं खुश क्यों नहीं हो सकता.