Srikanth Review: दृष्टिहीन 'श्रीकांत' के रोल में राजकुमार राव ने किया कमाल, इस बायोपिक को मिस करना होगा गलती
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राजकुमार राव स्टारर फिल्म 'श्रीकांत' आज से सभी सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है. इस फिल्म में राजकुमार ने दृष्टिहीन बिजनेसमैन श्रीकांत बोला का किरदार निभाया है. कैसी है ये फिल्म और क्यों आपको देखनी चाहिए, जानिए हमारे रिव्यू में.
हमारे देश में ऐसे कई लोग हैं, जो तमाम मुश्किलों को झेलने के बाद अपनी खुद की किस्मत अपने हाथों से लिख रहे हैं. समाज में लोगों को उनके लुक्स और क्षमताओ के आधार पर बांटा गया है. किसी के शरीर का कोई अंग खराब हो तो उसे सीधे मदद का मोहताज मान लिया जाता है. बिना पूछे कि क्या उसे सही में किसी की जरूरत है या नहीं. हम अपने से अलग दिखने वाले इंसान को हमेशा खुद से कम ही समझते हैं. अपने पुण्य के चक्कर में उसकी बिना पूछे मदद कर देते हैं, लेकिन कभी सही में उसके लिए आगे नहीं आते. राजकुमार राव की फिल्म 'श्रीकांत' ऐसी ही कुछ और और भी बहुत-सी बातों को दिखाती है.
क्या है फिल्म की कहानी?
एक लड़का जो जन्म से ही अंधा पैदा हुआ था. बेटा पैदा होने की खुशी उसके पिता को इतनी थी कि वो उसे गोद में उठाकर नाचने लगे थे. पिता ने बिना उसका चेहरे देखे उसका नाम क्रिकेटर कृष्णमाचारी श्रीकांत के नाम पर श्रीकांत रख दिया था. लेकिन जब भोली-सी सूरत पर नजर गई तो समझ आया कि पूरे घर में वो अकेला ही खुशी क्यों मना रहा था. समाज और लोगों के हिसाब से बच्चे में कमी थी. उसी 'भगवान को वापस' दे देना ही ठीक था. अगर ऐसा नहीं किया तो जिंदगी में उसे ठोकर खाता देखते हुए रोना पड़ता. तो पिता ने जन्म के एक दिन बाद ही उसे जिंदा दफनाने की कोशिश की. लेकिन उसकी किस्मत में कुछ और ही लिखा था.
भगवान ने भले ही श्रीकांत को आंखें नहीं दी थीं, लेकिन उसे कंप्यूटर से तेज दिमाग जरूर दिया था. वो अपने स्कूल के 'नॉर्मल' बच्चों से ज्यादा शार्प था. गणित उंगलियों पर ही कर लेता. देख नहीं सकता था तो जाहिर है लोगों ने उसे बुली भी किया. लोगों का ताना उसे हमेशा खला कि अंधा है तो बड़े होकर भीख मांगेगा. लेकिन यही ताना उसके लिए मोटिवेशन का जरिया भी बना. इसी ताने की लगाई आग उसके अंदाज इतनी थी कि उसने एजुकेशन सिस्टम को बदला और तो और यूएस तक में पढ़ाई भी की. उसने अपने हाथों से अपनी किस्मत को लिखा. यही कहानी है श्रीकांत बोला की, जिनका किरदार राजकुमार राव ने फिल्म 'श्रीकांत' में निभाया है.
निर्देशन
एक बायोपिक को जज सिर्फ इसी बात से किया जा सकता है कि डायरेक्टर ने उसे कितनी ईमानदारी से बनाया है और एक्टर्स ने उसमें कैसा काम किया है. ये दोनों ही चीजें फिल्म में अच्छी हैं. डायरेक्टर तुषार हीरानंदनी ने काफी ईमानदारी के साथ श्रीकांत की जिंदगी की कहानी को पर्दे पर उतारा है. उनके इमोशन्स, बचपन से लेकर जवानी तक के उनके स्ट्रगल, उनकी खुशी, उनके गम, कमियाबी के साथ आता घमंड, सबकुछ तुषार ने अपनी फिल्म में दिखाया है. पिछले काफी वक्त में बनी बायोपिक फिल्मों में 'श्रीकांत' काफी अच्छी है.