Google CEO सुंदर पिचाई को याद आए पुराने दिन, बताया- एक टेलीफोन के लिए किया 5 साल इंतजार
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साल 1972 में भारत के चेन्नई में जन्मे और IIT Kharagpur से पढ़ाई कर अमेरिका वाले सुंदर पिचाई (Sundar Pichai) किसी पहचान के मोहताज नहीं है. उन्होंने वार्टन से एमबीए करने के बाद साल 2004 में गूगल में एंट्री ली थी और 2015 में उन्हें सीईओ बनाया गया था.
दुनिया के सबसे बड़े सर्च इंजन गूगल (Google) के सीईओ भारतीय मूल के सुंदर पिचाई (Sundar Pichai) को एक इंटरव्यू के दौरान बचपन के दिन याद आए. उन्होंने कहा कि मैं एक मिडिल क्लास फैमिली में पला बढ़ा हूं और मेरा बचपन एक छोटे से घर में बीता जहां सुविधाओं का अभाव था. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि मैंने टेक्नोलॉजी को कभी भी हल्के में नहीं लिया और माता-पिता ने भी हमेशा कुछ नया सीखने पर जोर दिया.
चेन्नई से अमेरिका तक का सफर साल 1972 में भारत के चेन्नई में जन्मे और IIT Kharagpur से पढ़ाई कर अमेरिका वाले सुंदर पिचाई (Sundar Pichai) किसी पहचान के मोहताज नहीं है. उन्होंने वार्टन से एमबीए करने के बाद साल 2004 में गूगल में एंट्री ली थी और साल 2015 में उन्होंने गूगल की पैरेंट कंपनी अल्फाबेट इंक का सीईओ बना दिया गया. हाल ही में ब्लूमबर्ग को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने चेन्नई से अमेरिका पहुंचने के अपने सफर के बारे में विस्तार से बात की और बताया कि कैसे सुविधाओं के अभाव में उनका बचपन बीता और टेक्नोलॉजी ने उनके जीवन की दिशा को बदलने का काम किया.
हमेशा सीखने की आदत आई काम Sundar Pichai ने बताया कि उनके माता-पिता ने उनकी पढ़ाई को हमेशा महत्व दिया और कभी भी इसके साथ कोई समझौता नहीं किया. इसके साथ ही उन्होंने पढ़ाई के साथ ही टेक्नोलॉजी से भी उन्हें जोड़े रखा. उन्होंने अपने बचपन के दिनों की याद करते हुए बताया कि उस माहौल का ही असर रहा जिसने ज्ञान और नई चीजों को सीखने में हमेशा मेरी मदद की और मैंने कभी भी टेक्नोलॉजी को हल्के में नहीं लिया. पिचाई के मुताबिक, माता-पिता की इस सीख का मेरी सक्सेस में बड़ा रोल रहा.
जब घर आया पहला टेलीफोन सुंदर पिचाई के मुताबि, एक सामान्य मिडिल क्लास फैमिली में मेरा बचपन बीता और उस समय आज की तरह सुविधाएं नहीं हुआ करती थीं. उन्होंने इसका उदाहरण देते हुए बताया कि अपने पहले टेलीफोन के लिए मुझे 5 साल का लंबा इंतजार करना पड़ा था, तब जाकर पहला रेट्रो फोन घर आया था. तब हमने फोन के प्रभाव के बारे में जाना. यही नहीं कुछ दिनों के बाद घर में टेलीविजन भी आया. गूगल सीईओ के मुताबिक, ये ऐसा दौर था जबकि भारत में किसी के घर में टीवी और टेलीफोन होना बहुत बड़ी बात हुआ करती थी.
जब बड़ा हुआ, तो सबसे पहले बिना गियर वाली मोटरसाइकिल आई, जो साइकिल की ही तरह थी, लेकिन इसे चलाना उससे भी ज्यादा मुश्किल था और मैं इसी से पढ़ने अपने स्कूल जाया करता था. फिर बहुत समय बाद गियर वाली नई बाइक आने से उन्हें बेहद खुशी मिली थी.
AI के युग में भी गूगल जरूरी Google CEO Sundar Pichai तमाम भारतीयों के लिए एक पोस्टर बॉय रहे हैं और उनकी चेन्नई से अमेरिका तक की जर्नी बेहद प्रेरणादायक रही है. उन्होंने खुद बताया कि बचपन की सीखों का प्रभाव 2015 में गूगल में सीईओ की भूमिका संभालने के बाद उनके वर्क एथिक्स बल्कि पूरी कंपनी में दिखाई दिया है. उन्होंने इंटव्यू में कहा, 'मैं स्कूल जाने के लिए काफी दूर तक बिना गियर वाली बाइक चलाता था, जब मुझे गियर वाली बाइक मिली, तो मैं बोल पड़ा था कि वाह! कितना नाटकीय अंतर है. मैंने प्रौद्योगिकी को कभी हल्के में नहीं लिया. मैं हमेशा इस बात को लेकर आशावादी रहा हूं कि तकनीक कैसे बदलाव ला सकती है.'
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