Exclusive: तालिबान कमांडर की आपबीती- दूसरे गलती करें तो कोड़े या कैद, हम करें तो मिलती है सिर्फ मौत!
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तालिबान के आने के साथ ही अफगानिस्तान एक किले में तब्दील हो चुका है. मगरमच्छों और जहरीले सांपों से घिरे इस किले में दुनिया की कोई ताकत सेंध नहीं लगा पाती. न ही खबरें बाहर आ पाती हैं, सिवाय छनी हुई बातों के. वहां औरतें-बच्चे बदहाल हैं. पुरुष नाखुश हैं. लेकिन कमांडर, जिनपर तालिबानी सिस्टम लागू करवाने का जिम्मा है, उनके हालात भी खास अच्छे नहीं.
कुछ वक्त पहले अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार ने तीन साल पूरे होने पर जश्न मनाया. साथ ही दावा किया कि उसके शासन में मुल्क में शांति आ चुकी. ये सच भी है. वहां शांति तो है लेकिन मरघट जैसी. लोग डरे हुए हैं कि कोई भी नियम टूटा तो जेल चले जाएंगे. समय-समय पर पाबंदियों की ‘रिवाइज्ड’ लिस्ट निकलती है. ये नियम तालिबानी कमांडरों पर भी लागू होते हैं. aajtak.in ने कई सोर्सेज से गुजरते हुए एक जिले के ऐसे ही कमांडर अशरफ से बात की, जो खुफिया विभाग देख रहे हैं.
पहचाने जाने के खतरे को देखते हुए हमने उनकी पहचान गुप्त रखी है. अशरफ कहते हैं- आम लोग बात न मानें तो उन्हें जेल होती है. हमसे गलती हो जाए तो सजा मौत है, वो भी परिवार समेत. फोन कॉल, वॉट्सएप के साथ टेलीग्राम पर भी, इंटरव्यू के साथ ही साथ वे चैट डिलीट करते हुए कहते हैं- जितना पूछना हो, पूछ लीजिए, फिर मैं नंबर डेस्ट्रॉय कर दूंगा. यही बात हमारे कई सोर्सेज कहते हैं. अफगानिस्तान में लोगों के नंबर बदलते रहते हैं. कई बार महीने या हफ्तेभर के भीतर. खासकर जो लोग देश से बाहर जाने की कोशिश में हों, वे भूल से भी कोई क्लू नहीं छोड़ना चाहते. फोन पर बात करने से बचते हैं. नातेदारों में जाना कम कर देते हैं कि किसी को भनक न मिल जाए. इमिग्रेशन अधिकारियों को मोटी रकम देते हैं, और फिर एक दिन चुपके से गायब हो जाते हैं. घर-जमीन-जतन से उगाई फूल-पत्तियों को सूखता हुआ छोड़कर.
अफगानिस्तान के जिस कमांडर से हमारी बात हुई, वो भी 'बीमारी के बहाने' देश से भागने की जुगत लगा रहे हैं.
बीते दिनों को छिने हुए राजपाट की तरह याद करते हुए अशरफ कहते हैं- ‘रिपब्लिक (चुनी हुई सरकार के लिए यहां के लोग यही कहते हैं) के दौर में मैं लड़कियों को पढ़ाता था. तालिबान तब भी दीमक की तरह फैल रहा था. मैं जिस ओहदे पर था, उनके आने की भनक पहले ही लग चुकी थी.
मैंने दाढ़ी बढ़ा ली. बच्चियों को भी तैयार करने लगा कि एकदम से घर बैठते हुए वे टूट न जाएं. लेकिन जो बात सबसे ज्यादा परेशान करने वाली थी, वो ये कि आगे चलकर मैं खुद यही नियम-कायदे लागू कराने वाला था. सरकार गिरने के साथ मैं तालिबान्स का हिस्सा बन गया. उनके खुफिया विभाग का कमांडर’.
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