90 के दशक में खूब था आनंद मोहन का रसूख... लेकिन इन दो दशकों में कोसी से पानी बहुत बह चुका है!
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बाहुबली आनंद मोहन को जेल से 'आजादी' मिल गई है. बिहार सरकार के द्वारा किए गए नियमों के बदलाव के बाद आनंद मोहन जेल से बाहर आ गए हैं, जिसे सियासी नफा-नुकसान से तौला जा रहा है. हालांकि, पिछले तीन दशकों में कोशी से बहुत पानी बह गया है. ऐसे में आनंद मोहन के सियासी रसूख को कसौटी पर कसा जाना है?
बिहार के बाहुबली राजनेता और पूर्व सांसद आनंद मोहन की आखिरकार जेल से रिहाई हो गई है. गोपालगंज के तत्कालीन DM जी. कृष्णैया हत्याकांड के दोषी आनंद मोहन की रिहाई के बाद उनके स्वागत में कई जगह सड़कों पर पोस्टर और बैनर लगे हुए देखे गए. रिहाई के समय भी आनंद मोहन का रसूख कुछ उसी तरह नजर आया जैसा 16 साल पहले जेल जाते समय था.
बिहार में आनंद मोहन का सियासी रसूख कैसा है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कोई भी दल खुलकर विरोध नहीं कर पा रहा है. बिहार सरकार में शामिल सात दल आनंद मोहन की रिहाई का खुलकर समर्थन कर रहे हैं तो विपक्षी बीजेपी दुविधा में फंसी हुई है और चाहकर भी विरोध नहीं कर पा रही है. आनंद मोहन की रिहाई के पीछे की वजह है 2024 का लोकसभा चुनाव, जिसके जातिगत समीकरणों से जोड़कर देखा जा रहा है, लेकिन पिछले तीन दशकों में कोसी से बहुत पानी बह गया.
दरअसल, आनंद मोहन ने 90 के दशक में एक उभरते हुए सवर्ण जाति के नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई थी. कहा जाता है कि तब आनंद मोहन के एक भाषण से भूमिहार और राजपूतों वोटरों के वोट तय होते थे.
आनंद मोहन के सियासी सफर की शुरूआत 1990 में हुई जब वह जनता दल के टिकट पर पहली बार महिषी विधानसभा सीट से विधायक बने. यह वह दौर था जब मंडल कमीशन बनाम मंदिर की राजनीति अपने चरम पर थी और लालू प्रसाद यादव ने इस कमीशन का समर्थन किया जबकि आनंद मोहन ने खुलकर इसकी विरोध किया था. जब जनता दल ने सरकारी नौकरियों में मंडल कमीशन की 27 फीसदी आरक्षण वाली बात का समर्थन किया तो आनंद मोहन ने अपनी राह अलग कर ली और सवर्णों के हक में आवाज उठाना शुरू किया.
बाहुबली ने अपनी सियासी ताकत को आजमाने के लिए खुद की पार्टी बनाई, लेकिन कुछ सालों में ही खुमार उतर गया और फिर दूसरे दलों का दामन थामकर अपनी राजनीति को आगे बढ़ाया. आनंद मोहन बिहार के हर एक दल में रह चुके हैं. जनता दल से लेकर समता पार्टी, आरजेडी, बीजेपी, कांग्रेस और सपा तक के साथ उनका नाता रहा है. इसीलिए कोई भी दल आज खुलकर उनका विरोध करता नजर नहीं आ रहा है.
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