क़ीमत और प्राइवेसी पर विचार किए बिना सरकार ने चुपचाप निजी कंपनी को बेचा वाहन संबंधी डेटा
The Wire
एक्सक्लूसिव: सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा निजता संबंधी चिंताओं व विभिन्न अधिकारियों की आपत्तियों को नज़रअंदाज़ करते हुए देश के कई करोड़ नागरिकों का वाहन रजिस्ट्रेशन संबंधी डेटा ऑटो-टेक सॉल्यूशंस कंपनी फास्ट लेन को बेहद कम क़ीमत पर बेचा गया, जिसके आधार पर कंपनी ने ख़ूब कमाई की.
नई दिल्ली: देश के परिवहन मंत्रालय द्वारा बल्क मोटर व्हीकल डेटा शेयरिंग पॉलिसी की घोषणा करने और फिर इसे निजता और दुरूपयोग संबंधी चिंताओं के चलते वापस लेने से करीब छह साल पहले केंद्र सरकार द्वारा देश के पूरे वाहन पंजीकरण डेटाबेस की कॉपी एक निजी भारतीय कंपनी को बेची गई थी. ‘यह माना जाता है कि चूंकि नीति पहले ही तैयार की गई है, इसलिए निजता के अधिकार और डेटा के दुरुपयोग जैसे मुद्दों और बाजार में डेटा साझा करने के लिए टेंडर निकालने की संभावना पर विचार किया गया होगा और सक्षम प्राधिकारी द्वारा अनुमोदित किया गया होगा.’ यह सौदा पूरी तरह से सार्वजनिक तौर पर हुआ था. सरकार ने मंत्रालय के अधिकारियों द्वारा ‘प्राइस डिस्कवरी’ की कमी को लेकर चिंता जताने बावजूद इस सौदे को लंबा खिंचने दिया. प्राइस डिस्कवरी किसी भी एसेट को बेचने से पहले उसकी कीमत को लेकर किया जाने वाला मूल्यांकन होता है, इस मामले में जिसे लेकर नौकरशाहों द्वारा डेटा को सस्ते में भेजने के लिए चेताया गया. अधिकारियों के द्वारा दिया गया निष्कर्ष ये था कि यह अनुबंध ग्राहक के ‘बहुत अधिक’ पक्ष में है. सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई) के जरिये प्राप्त किए गए सरकारी दस्तावेजों के अनुसार, सितंबर 2014 में हुए इस सौदे, जहां फास्ट लेन ऑटोमोटिव (एफएलए) नाम की एक ऑटो-टेक सॉल्यूशंस कंपनी को वाहन पंजीकरण डेटा बेचा गया, को लेकर सरकारी अधिकारियों द्वारा कई आपत्तियां दर्ज करवाई गई थीं.More Related News