हिजाब, हलाल और मुस्लिम पुरुष: मुसलमानों के बारे में हिंदुत्व के पूर्वाग्रहों का कोई अंत नहीं है
The Wire
मुस्लिमों की लानत-मलामत करना चुनाव जीतने का फॉर्मूला बन चुका है. और देश के हालात देखकर लगता नहीं है कि ये आने वाले समय में असफल होगा.
1980 के दशक में पाकिस्तान की क्रिकेट टीम के कप्तान इमरान खान, जो इस समय अपना राजनीतिक करिअर बचाने की जद्दोजहद में लगे हैं, भारत में काफी मशहूर थे, खेल के मैदान में भी और इससे बाहर भी. उनकी ग्लैमरस सोशल हस्तियों और अभिनेत्रियों के साथ पार्टियों की तस्वीरें खूब छपा करती थीं. वो एक साबुन का विज्ञापन भी करते थे, जिसमें उनकी मर्दानगी का भरपूर प्रदर्शन किया गया था- भारत में उस विज्ञापन में विनोद खन्ना को लिया गया था.
उस दौर में कहा जाता था कि इमरान और उनकी टीम के साथी युवा महिलाओं के बीच खासे चर्चित थे और भारत में उन्होंने अच्छा समय बिताया. भारतीय क्रिकेटरों को तब ये शिकायत करते सुना जाता था कि उन्हें पाकिस्तान में इस तरह की मेहमान-नवाज़ी नसीब नहीं होती.
अब जाकर मालूम हुआ कि भारतीय महिलाओं के प्रिय केवल पाकिस्तान के पुरुष नहीं थे- बल्कि सामान्य तौर पर मुस्लिम पुरुष हैं. कार्यकर्ता मधु पूर्णिमा किश्वर का ‘सेक्स जिहाद’ को लेकर किया गया ट्वीट कि कैसे प्रशिक्षित युवा मुस्लिम लड़के समवयसी हिंदू, ईसाई और सिख लड़कियों को अपनी बेहतर तकनीक और कौशल से बहका रहे हैं, चर्चा और जगहंसाई का विषय बना, लेकिन यह ‘डर’ आज का नहीं है, यह बहुत समय से बना हुआ है.
पटौदी के खूबसूरत नौजवान नवाब ने शर्मिला टैगोर से शादी की और बॉलीवुड के ख़ान अभिनेताओं ने भी हिंदू महिलाओं को अपने जीवनसाथी के बतौर चुना, या उनके साथ संबंध में रहे. स्पष्ट तौर पर ये भी इसी ‘सेक्स जिहाद’ साज़िश का हिस्सा हैं.