वसुंधरा राजे के बिना गहलोत के महिला कल्याण मॉडल को हरा पाएगी बीजेपी? पढ़िए चुनावी समीकरण
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एक तबका जो बीजेपी के लिए एक सॉलिड वोट बैंक है, वो है महिला वोटर्स. जब वसुंधरा राजे राज्य की मुख्यमंत्री थीं तब महिलाओं में पार्टी के सबसे लोकप्रिय चेहरे के रूप में विख्यात थीं. माना जा रहा है कि उनकी मौजूदगी महिला वोटरों को बीजेपी की ओर खींच सकती है.
राजस्थान में विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो गई है. एक तरफ कांग्रेस है, जो अशोक गहलोत की लोकप्रियता और कल्याण तंत्र पर भरोसा कर रही है. दूसरी ओर बीजेपी बिना किसी सीएम चेहरे के चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है. लेकिन जिस राज्य में जीत और हार का अंतर अक्सर बहुत कम होता है, वहां क्या ये रणनीति बीजेपी के लिए काम करेगी?
कांग्रेस और बीजेपी में कांटे की टक्कर
राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस दोनों बीच आमने-सामने की लड़ाई है. पिछले चुनाव के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि 5 प्रतिशत से कम अंतर से जीती गई सीटें चुनावी परिणाम अप्रत्याशित रूप से प्रभावित कर सकती हैं. साल 2018 में हुए चुनाव में लगभग 30 प्रतिशत सीटें ऐसी थीं, जिनमें जीत का अंतर 5 प्रतिशत से भी कम था. यह राजस्थान के राजनीतिक परिदृश्य में करीबी मुकाबले वाली सीटों के महत्व को दर्शाता है. 2003 और 2008 के चुनाव में कांग्रेस-बीजेपी के बीच कड़ा मुकाबला देखा गया था. जिसमें 41.5 प्रतिशत से ज्यादा सीटें मामूली अंतर से जीती गईं थीं. आंकड़ों से तो साफ दिख रहा है कि राजस्थान की रणभूमि को जीतने के लिए कैंडिडेट का चुनाव और जाति का समीकरण बैठना जरूरी है.
महिला वोट और वसुंधरा राजे का समीकरण
एक तबका जो बीजेपी के लिए एक सॉलिड वोट बैंक है, वो है महिला वोटर्स. जब वसुंधरा राजे राज्य की मुख्यमंत्री थीं तब महिलाओं में पार्टी के सबसे लोकप्रिय चेहरे के रूप में विख्यात थीं. माना जा रहा है कि उनकी मौजूदगी महिला वोटरों को बीजेपी की ओर खींच सकती है. बीजेपी के लिए महिला वोटर्स का विश्वास जीतना महत्वपूर्ण है, क्योंकि पिछले कुछ चुनावों में मतदान के मामले में उन्होंने पुरुषों से बेहतर प्रदर्शन किया है. चाहे 2013 हो या 2018, महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों की तुलना में 1% अधिक था. यही वजह है कि बीजेपी राज्य में महिला सुरक्षा का राग अलाप रही है.
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