ये नियम लागू होते ही कार-मोबाइल हो जाएंगे महंगे, डीजल गाड़ियों पर सबसे बड़ा संकट!
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BS-VI मानक का फेज टू शुरू होने से सबसे ज्यादा संकट डीजल कार को लेकर है, एक अनुमान है कि इस बदलाव के बाद डीजल कार 80 हजार रुपये तक महंगी हो जाएगी. हालांकि डीजल कारें महंगी होने से लोग हाइब्रिड कार को तवज्जो दे सकते हैं.
महंगाई की नई किश्त अब गाड़ी और मोबाइल की कीमत बढ़ाने वाली है. अगले साल अप्रैल से वाहनों के प्रदूषण को कंट्रोल करने के लिए बनाए गए BS-VI मानकों का फेज टू शुरू होने वाला है. इसके बाद कंपनियों को कारों के इंजन में बदलाव करने के साथ ही आधुनिक after-treatment systems लगाने होंगे, जिससे नाइट्रोजन उत्सर्जन का स्तर घटाया जा सकेगा.
इसके साथ ही particulate matter sensors भी कारों में लगाना अनिवार्य होगा. लेकिन इन सब बदलावों को लागू करने की वजह से कंपनियों को अतिरिक्त खर्च करना होगा जिससे कार बनाने की लागत बढ़ जाएगी. इसके असर से डीजल कार 80 हज़ार रुपये तक महंगी हो जाएगी. जबकि पेट्रोल कार की कीमत में 25 से 30 हज़ार रुपये तक का इजाफा होगा.
हाइब्रिड कारों को मिलेगा फायदा! डीजल कारों के दाम बढ़ने से इनकी बिक्री घटने और हाइब्रिड कारों को फायदा मिलने का अनुमान है. अगर कार कंपनियों ने डीजल कारों का दाम अनुमान के मुताबिक बढ़ा दिया तो फिर इनकी और हाइब्रिड कारों की कीमत का अंतर घट जाएगा. ऐसे में कार खरीदार डीजल कार खरीदने की जगह हाइब्रिड कार को तवज्जो दे सकते हैं क्योंकि ये कार ज्यादा माइलेज देने के साथ ही प्रदूषण भी कम करती हैं.
डीजल कारों को लेकर अनिश्चितता की स्थिति! डीजल कारों की कीमतों में बढ़ोतरी के बाद इनके ग्राहकों की तादाद में कमी आने की आशंका इसलिए भी है, क्योंकि दिल्ली समेत कई शहरों में 10 साल पुरानी डीजल कारें बैन हो चुकी हैं. इसके अलावा डीजल कारों को लेकर कंपनियां सरकार की नीतियों को लेकर असमंजस में हैं. ऐसे में डीजल प्लांट्स पर किया गया पुराना निवेश वसूलना जिस तरह से कुछ कंपनियों के लिए चुनौती बना हुआ है उनके लिए आगे डीजल मॉडल्स में निवेश करने का फैसला लेना बेहद कठिन होगा.
दरअसल, बीते 15 साल कार कंपनियों के लिए काफी दुविधा भरे रहे हैं. 2007-08 में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में काफी अंतर था और देश में डीजल कारों की मांग बढ़ने लगी थी. ऐसे में कंपनियों ने बड़े निवेश डीजल प्लांट्स में किए थे. लेकिन इसके बाद डीरेगुलेशन से डीजल और पेट्रोल के दाम तकरीबन बराबर हो गए. ऐसे में अचानक से डीजल कारों की मांग घट गई. इसके बाद इलेक्ट्रिक कारों को लेकर सुगबुगाहट शुरू हो गई और कंपनियों को अपनी योजनाओं को फिर से बदलने पर विचार करना पड़ा. इसमें देरी हुई तो पेट्रोल-डीजल के महंगा होने से CNG कारों की मांग में तेजी आने लगी. लेकिन अब जिस तरह से CNG के दाम बढ़ रहे हैं तो वहां भी योजनाओं के विस्तार को लेकर कंपनियां पसोपेश में हैं. ऐसे में अब डीजल कारों के नए प्रदूषण नियम और इनके इस्तेमाल की वैलिडिटी पर स्थिति साफ ना होने से कंपनियों के लिए एक बार फिर नई चुनौती पैदा होने वाली है जिससे सबसे ज्यादा असर महिंद्रा एंड महिंद्रा और टाटा जैसे देसी कंपनियों पर होगा.
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