मुनव्वर फ़ारूक़ी के साथ खड़े होना कलाकारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी के पक्षधरों का कर्तव्य है
The Wire
‘हिंदुत्ववादी’ संगठनों की अतीत की अलोकतांत्रिक करतूतों के चलते उनकी कार्रवाइयां अब किसी को नहीं चौंकातीं. लेकिन एक नया ट्रेंड यह है कि जब भी वे किसी कलाकार के पीछे पड़ते हैं, तब लोकतांत्रिक होने का दावा करने वाली सरकारें, किसी भी पार्टी या विचारधारा की हों, कलाकारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी के पक्ष में नहीं खड़ी होतीं, न ही उन्हें संरक्षण देती हैं.
भारतीय श्रुति परंपरा कहती है: कविर्मनीषी परिभू स्वयम्भू. यानी कवि मनीषी तो होता ही है, अपनी अनुभूति के क्षेत्र में सब कुछ समेटने में सक्षम होता है और उसके लिए किसी का ऋणी नहीं होता.
‘शब्दकल्पद्रुम’ में तो कवि की परिभाषा देते हुए यहां तक कहा गया है कि ‘कवये सर्वजानाति सर्ववर्णयतीति कविः’ अर्थात कवि वह है, जो सब जानता हो और सारे विषयों का वर्णन कर सकता हो. साफ है कि उससे नवनवोन्मेषशालिनी प्रतिभा से संपन्न होने की अपेक्षा की जाती है. अन्यथा वह ‘जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि’ वाली कहावत को सार्थक कर ही नहीं सकता.
इसी कड़ी में आनंदवर्धन कहते हैं कि अपार काव्यसंसार में कवि ब्रह्मा है और उसे संसार में जो जैसा अच्छा लगता है, वैसा ही वह उसका निर्माण करता है.
देशांतर की बात करें तो एक कथा है कि एक समय एक शायर ने अपनी काव्य पंक्तियों में अपनी प्रेमिका की खूबसूरती या किसी अदा पर, ठीक से याद नहीं आ रहा, अपने देश के दो सूबे कुर्बान कर दिए तो कुछ विघ्नसंतोषियों ने बादशाह से उसकी शिकायत कर दी.