बांग्लादेश में हिंदुओं पर हुए हमले के बीच सीएए पर क्यों तेज़ हो गई है चर्चा?
BBC
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मिलिंद देवड़ा ने कहा है कि किसी विधेयक को उसके पास होने के छह महीने तक लागू करना आम बात है, लेकिन सीएए को पास हुए डेढ़ साल हो गए और कुछ भी नहीं हुआ. क्या सीएए सिर्फ़ एक राजनीतिक जुमला था.
बांग्लादेश के कई ज़िलों में हिंदुओं पर सिलसिलेवार हमलों के बाद पिछले कुछ दिनों से भारत के नागरिकता कानून पर एक बार फिर बहस फिर शुरू हो गई है.
सत्तारूढ़ पार्टी के कई नेता लंबे समय से कानून को लागू करने की मांग करते रहे हैं, वहीं इसका विरोध करने वाली विपक्षी पार्टियों को याद दिलाया जा रहा है कि कैसे ये कानून बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के अल्पसंख्यकों के हित में है.
दिसंबर, 2019 में संसद ने नागरिकता संशोधन अधिनियम पास किया था जिसके तहत बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के शिकार हिंदुओं, सिखों, ईसाइयों और बौद्धों को भारत में नागरिकता देने का प्रवधान किया गया. इस कानून को सीएए के नाम से भी जाना जाता है.
इस कानून को मुसलमान विरोधी और असंवैधानिक बताते हुए देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुए थे. सौ दिनों से अधिक समय तक शाहीन बाग में महिलाओं ने सड़क पर बैठकर अपना विरोध दर्ज कराया. लेकिन कोरोना के कारण लगे देशव्यापी लॉकडाउन ने पूरे विरोध प्रदर्शन को ख़त्म कर दिया.
अब लगभग डेढ़ साल बाद एक बार फिर नागरिकता कानून को लेकर बहस तेज़ हो गई है.