पूर्व सांसद आजम खान को बड़ी राहत, डकैती मामले में कोर्ट से बरी, जानें क्या था मामला
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रामपुर के गंज थाना क्षेत्र के डूंगरपुर बस्ती को खाली कराने के आरोप में 12 मुकदमे 2019 में दर्ज हुए थे। इन केसों में आजम खान, पूर्व पालिकाध्यक्ष अजहर अहमद खां, ठेकेदार बरकत अली, रिटायर्ड सीओ आले हसन, फिरोज खां, रानू खां, धर्मेंद्र चौहान, फसाहत अली खां शानू को आरोपी बनाया गया था. इनके खिलाफ घर में घुसकर मारपीट व डकैती और आपराधिक षड्यंत्र रचने की धाराओं में केस दर्ज किया गया था.
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद आजम खान समेत 7 लोगों को 2019 के डकैती मामले में बड़ी राहत मिली है. एमपी-एमएलए कोर्ट ने डूंगरपुर बस्ती के एक घर में घुसकर डकैती मामले में सभी आरोपियों को बरी कर दिया है. इस मामले में कोर्ट में मंगलवार को सुनवाई पूरी हो गई थी. हालांकि कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसे आज बुधवार को सुनाया गया है.
दरअसल, रामपुर के गंज थाना क्षेत्र के डूंगरपुर बस्ती को खाली कराने के आरोप में 12 मुकदमे 2019 में दर्ज हुए थे। इन केसों में आजम खान, पूर्व पालिकाध्यक्ष अजहर अहमद खां, ठेकेदार बरकत अली, रिटायर्ड सीओ आले हसन, फिरोज खां, रानू खां, धर्मेंद्र चौहान, फसाहत अली खां शानू को आरोपी बनाया गया था. इनके खिलाफ घर में घुसकर मारपीट व डकैती और आपराधिक षड्यंत्र रचने की धाराओं में केस दर्ज किया गया था.
क्या है डूंगरपुर प्रकरण
बता दें कि सपा सरकार के दौरान में डूंगरपुर में आसरा आवास बनाए गए थे. यहां पहले से कुछ लोगों के मकान बने हुए थे, जिन्हें सरकारी जमीन पर बताकर 3 फरवरी 2016 की सुबह तोड़ा दिया गया था. बीजेपी की सरकार बनने पर इन लोगों ने 25 जुलाई 2019 में गंज कोतवाली में मुकदमे दर्ज कराए थे. 12 लोगों ने अलग-अलग केस दर्ज कराए थे. शिकायत दी गई कि सपा सरकार में आजम खान के इशारे पर ही पुलिस और सपाइयों ने बस्ती में आसरा आवास बनाने के लिए उनके घरों को जबरन खाली कराया था. इस दौरान उनके साथ मारपीट और लूटपाट की गई. मकानों पर बुलडोजर चलवाकर ध्वस्त किया गया.
एक समय पर आजम की बोलती थी तूती
आजम खान समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं. मुलायम सिंह यादव के जमाने में उनकी तूती बोलती थी. यूपी में जब भी सपा सरकार बनी, उनका रुतबा मुख्यमंत्री से कम नहीं रहा. रामपुर से लखनऊ तक उनका जलवा था. वो कई बार विधायक, राज्यसभा सांसद, लोकसभा सांसद, कैबिनेट मंत्री और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तक रहे हैं. लेकिन साल 2017 में सत्ता में योगी आदित्यनाथ के आने के बाद से उनके बुरे दिनों की शुरुआत हो गई. 2017 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान उनके द्वारा दिया गया एक बयान उनके गले की फांस बन गया, जिसमें उन्होंने प्रशासनिक अधिकारियों पर अभद्र टिप्पणी की थी.
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