दलबदल, क्रॉस वोटिंग और राज्यसभा चुनावों में शह-मात के मोहरे... वही सवाल पंडित नेहरू के सामने भी थे जो आज हैं!
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Rajya Sabha Election: राज्यसभा चुनाव के दौरान हाल ही में धन-बल, दलबदल और क्रॉस वोटिंग के आरोप चर्चा में थे. ऐसा सीन हर बार दिखता है जब राज्यसभा के चुनाव होते हैं. बहुमत किसी और पार्टी के पक्ष में होता है और उम्मीदवार किसी और दल का जीत जाता है. क्या हमेशा से सिस्टम ऐसा ही था? क्या कहते हैं ऐतिहासिक तथ्य? आजादी के बाद जब देश के पहले पीएम पंडित नेहरू दो सदन वाले संसद का प्रस्ताव लाए थे तो क्या बहस चल रही थी, क्या वो चिंताएं आज सच साबित हो रही हैं? इस सिस्टम में अटल सरकार के समय क्या बदलाव किया गया था?
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दरअसल उस दिन राज्यसभा की 56 में से 15 सीटों के लिए वोटिंग हो रही थी. राज्यसभा यानी देश की संसद का उच्च सदन, यानी ऐसे लोगों के चुनाव की प्रक्रिया जो देश के लोगों का प्रतिनिधित्व करेंगे, देश के लोगों के लिए कानून बनाने का काम करेंगे. क्रॉस वोटिंग करने वाले भी कोई आम लोग नहीं थे, बल्कि जनता के चुने हुए विधायक थे और अपनी-अपनी विधानसभाओं के लाखों वोटर्स द्वारा चुनकर आए हुए लोग थे. इन विधायकों की क्रॉस वोटिंग यानी अपनी पार्टी की बजाय दूसरी पार्टियों के उम्मीदवारों को वोट देने से 15 में से दो सीटों पर नतीजे बदल गए.
ऐसा भी नहीं है कि राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग पहली बार हुई हो. हर बार ऐसा होता है और इससे पहले यूपी, राजस्थान, गुजरात, हरियाणा में राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग के कई मामले चर्चित रह चुके हैं. कौन सी पार्टी जीती और कौन सी पार्टी हारी इस बहस में पड़ने की बजाय इस बात पर आते हैं कि क्या इस सिस्टम में बदलाव की जरूरत है? ऐतिहासिक तथ्य क्या कहते हैं?
पहले कुछ वर्तमान आंकड़ों पर गौर करना जरूरी
चुनावी सुधार और क्रॉस वोटिंग की चर्चा के बीच राज्यसभा यानी संसद के उच्च सदन के कुछ वर्तमान आंकड़ों पर पहले गौर कर लेते हैं. चुनावी डेटा पर नजर रखने वाली संस्था ADR की एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्यसभा के 225 सिटिंग सदस्यों (1 मार्च 2024 तक) में से 33 फीसदी यानी करीब 75 ने अपने खिलाफ क्रिमिनल केस होने की बात चुनावी हलफनामों में स्वीकार की है. इनमें से दो सदस्यों के ऊपर हत्या का केस चल रहा है तो 4 के ऊपर हत्या की कोशिश यानी एटेम्प्ट टू मर्डर का केस चल रहा है. उच्च सदन के इन 225 सदस्यों के पास कुल संपत्ति 19,602 करोड़ रुपये है. इनमें से 31 यानी 14 फीसदी राज्यसभा सदस्य अरबपति हैं.
अमेरिकी सीनेट के सिस्टम में क्या है?
सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात यह रही कि खींवसर को तीन क्षेत्रों में बांटकर देखा जाता है और थली क्षेत्र को हनुमान बेनीवाल का गढ़ कहा जाता है. इसी थली क्षेत्र में कनिका बेनीवाल इस बार पीछे रह गईं और यही उनकी हार की बड़ी वजह बनी. आरएलपी से चुनाव भले ही कनिका बेनीवाल लड़ रही थीं लेकिन चेहरा हनुमान बेनीवाल ही थे.
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