तालिबान 2.0 तालिबान 1.0 से अलग है या सिर्फ़ अलग दिखने का दिखावा कर रहा है?
BBC
टीवी चैनल में आकर अपनी बात रखने से लेकर महिलाओं को काम करने के अधिकार देने तक - इस बार का तालिबान 90 के दशक के तालिबान के मुक़ाबले थोड़ा अलग दिख रहा है. आख़िर क्यों?
साल 1996 की बात है. मरियम सफ़ी उस वक़्त 19 साल की थीं. वो अफ़ग़ानिस्तान के मज़ार-ए-शरीफ़ में मेडिकल की पढ़ाई कर रही थीं. अचानक एक ही दिन में उनकी पूरी दुनिया बदल गई. तालिबान ने मज़ार-ए-शरीफ़ पर जब क़ब्ज़ा किया तो उन्हें अपनी पढ़ाई अचानक रोकनी पड़ गई. उनके (तालिबान) सत्ता में आने के बाद अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं की शिक्षा पर रोक लगा दी गई थी. महिलाएं घर से अकेले निकलती थीं तो धार्मिक पुलिस उन्हें पीटती थी. उन्हें केवल अपने पिता, भाई और पति के साथ ही घर से बाहर निकलने की इजाज़त थी. उस दौरान सार्वजनिक रूप से मृत्यु दंड देने, स्टोनिंग (पत्थरों से मारने की प्रथा) और हाथ-पैर काटने जैसी सज़ा आम बात थी. इस डर और खौफ़ की वजह से मरियम की मेडिकल की पढ़ाई भी थम गई. वो घर में क़ैद हो कर रह गईं. लेकिन जब 2001 में अमेरिका के नेतृत्व में नेटो ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला किया और तालिबान को खदेड़ दिया तो मरियम ने अपनी पढ़ाई पूरी की. बीते रविवार को काबुल में तालिबान के क़ब्ज़े के बाद मरियम की वो यादें एक बार फिर ताज़ा हो गई हैं. अब बात 17 अगस्त 2021 की "काबुल में तालिबान के क़ब्ज़े के दो दिन बाद जिस होटल में मैं रुका हूँ, मैंने पाया कि होटल के पुरुष स्टाफ़ ने दो दिनों से शेव तक नहीं किया है. होटल की महिला स्टाफ़ अब रिसेप्शन, रूम सर्विस और सफ़ाई के काम में नहीं लगी हैं. वो होटल से नदारद हैं. होटल में बैकग्राउंड म्यूज़िक जो दो दिन पहले तक चलता था, अब बिल्कुल बंद है.More Related News