जो धर्मों के अखाड़े हैं, उन्हें लड़वा दिया जाए…
The Wire
जिस तरह भ्रष्टाचारियों को अपना भ्रष्टाचार भ्रष्टाचार नहीं लगता, उसी तरह कट्टरपंथियों को अपनी कट्टरता कट्टरता नहीं लगती. वे ‘दूसरी’ कट्टरताओं को कोसते हुए भी अपनी कट्टरताओं के लिए जगह बनाते रहते हैं और इस तरह दूसरी कट्टरताओं की राह भी हमवार करते रहते हैं.
दक्षिण एशिया में कट्टरपंथ के उभार के मद्देनजर इन दिनों ‘काल तुझसे होड़ है मेरी’ के सर्जक हिंदी के वरिष्ठ कवि शमशेर बहादुर सिंह (13जनवरी, 1911-12 मई, 1993) की एक लंबी कविता, जिसकी कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैं, बार-बार याद आती है:
जो धर्मों के अखाड़े हैं उन्हें लड़वा दिया जाए!
ज़रूरत क्या कि हिंदुस्तान पर हमला किया जाए!!
मुझे मालूम था पहले ही ये दिन गुल खिलाएंगे ये दंगे और धर्मों तक भी आखि़र फैल जाएंगे…जो हिंदू और मुस्लिम था सिख-हिंदू हो गया देखो!
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