जब फिल्मी बारिश ने स्क्रीन पर तो जमाया रंग, मगर शूट करने में निकल गए पसीने
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सावन का महीना शुरू हो चुका है और सिर्फ पवन ही नहीं, गगन का शोर भी सुनाई देने लगेगा. फिल्मी दिल रखने वाले लोगों को इन दिनों कई बारिश वाले गाने-सीन्स याद आएंगे. बड़े पर्दे पर बारिश जितनी खूबसूरत लगती है, इसे शूट करना उतना ही मुश्किल होता है. बारिश वाले सीक्वेंस शूट करने के किस्से बताते हैं कि ये कितना मुश्किल काम है.
साल के वो महीने शुरू हो चुके हैं घर के स्टोर में छुपा दी गईं छतरियों को फिर से निकाल लेना जरूरी हो जाएगा. बीच-बीच में उमस भरे माहौल से मूड खराब तो होगा, लेकिन बारिशों के बाद अपने सबसे प्यारे शेड्स में हरे दिखते पेड़ों और नीले आसमान से भरपाई भी होगी. और ये वक्त होगा जब बारिश से बचने के लिए किसी मकान के छज्जे के नीचे खड़े दो लोग, किसी फिल्म से अपना फेवरेट बारिश वाला सीक्वेंस याद करेंगे.
रियल में इस मौसम का रंग कभी-कभी रियलिटी में पानी भरी सड़कों और कीचड़ से डिस्टर्ब भी हो सकता है. लेकिन फिल्मों में, बड़े पर्दे पर ये मौसम बहुत कमाल लगता है. मौसम के रंग जब स्क्रीन पर अपनी बेस्ट रिजोल्यूशन में उतरते हैं और जब डॉल्बी डिजिटल में बादलों की गूंज का साउंड आता है. जब चाय के कप में टपकती बारिश की बूंद से 'दिल से' के शाहरुख खान का हसीन सपना टूटता है. या जब 'हाथ से फिसले-खुदगर्ज़ दिलों' वाले कपल्स, अपनी मेट्रो सिटी वाली भागती-दौड़ती लाइफ को बारिश में थोड़ा ठहरकर जीते हैं. तब सिनेमा, दर्शकों की आंखों को तरावट देता है.
थिएटर्स में स्क्रीन पर ये बारिशें लगती तो बहुत खूबसूरत हैं. लेकिन इन्हें स्क्रीन तक लाने में जो कुछ होता है. उसमें सावन जैसा हरा शायद ही कुछ होता हो. बल्कि पानी की बूंदों को इस खूबसूरती से बड़े पर्दे तक लाने में कई बार फिल्म पर काम कर रहे लोगों के पसीने जरूर छूट जाते हैं. पेश हैं फिल्मों में बारिश का सीक्वेंस शूट होने के कुछ ऐसे ही किस्से... भाग मिल्खा भाग भारत के एथलेटिक्स लेजेंड, 'द फ्लाइंग सिख' मिल्खा सिंह की लाइफ पर बनी ये फिल्म, हिंदी की सबसे आइकॉनिक बायोपिक्स में से एक है. डायरेक्टर राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने अपनी शानदार सिनेमेटिक भाषा में जिस तरह इस फिल्म को पेश किया उसे अद्भुत से कम नहीं कहा जा सकता. और 'भाग मिल्खा भाग' के सीन्स को इमोशंस के साथ जोड़े रखने के काम में बारिश का भी रोल था.
फिल्म में कई महत्वपूर्ण मौकों पर आपको फ्रेम में बारिश मिलेगी. मिल्खा सिंह के पेरेंट्स की हत्या वाले सीक्वेंस में बारिश है. इसे शूट करने के लिए मेकर्स ने जिस तरह की तैयारी की, वो अपने आप में किसी मिशन जैसा था. इस शॉट में आर्टिफीशियल बारिश करवाने के लिए लगभग 250 रेन मशीन किराए पर ली गईं. नतीजा ये हुआ कि लगभग पूरा गांव और एक तालाब इन मशीनों की रेंज में आ गए. लेकिन ये गांव में फसल कटने का सीजन था और फसलों को किसी तरह की सिंचाई से बचाना भी जरूरी था.
इसका हल यूं निकला कि फसलों वाले पूरे एरिया को कवर किया गया. एक पुरानी रिपोर्ट में फिल्म की यूनिट से जुड़े व्यक्ति ने बताया था कि इस तैयारी में पूरे 40 दिन लगे थे. लेकिन इसके बाद भी टीम को तसल्ली नहीं हुई और उन्होंने फाइनल शूट से पहले एक मॉक ड्रिल करके ये चेक किया कि कहीं पानी फसलों पर तो नहीं जा रहा. डायरेक्टर राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने खुद ये बात कन्फर्म की थी. तुम्बाड़ डायरेक्टर राही अनिल बर्वे की मास्टरपीस 'तुम्बाड़' में, पूरी कहानी के दौरान बारिश होती रहती है. लेकिन इसमें आर्टिफिशियल बारिश बहुत कम है. फिल्म का अधिकतर हिस्सा रियल बारिश में शूट किया गया है. 'तुम्बाड़' का शूट पूरा होने में 4 मानसून लगे. फिल्म के सिनेमेटोग्राफर आयर डायरेक्टर ने अपने इंटरव्यू में कई बार बताया है कि कितने ही दिन ऐसे होते थे जब एक ढंग का सीन शूट नहीं हो पाता था. कभी सही से बारिश नहीं हुई, कभी बारिश हुई तो सेटअप में कुछ चूक हो गई.
फिल्म की एक यूनिट सारी तैयारी करके रेडी रहती थी और कई लोग सिर्फ आसमान की तरफ देखते रहते थे, बादल आते ही सब झट से रेडी हो जाते थे. 'तुम्बाड़' को रियल लोकेशंस पर खुले मैदानों में शूट किया गया था. और जब आर्टिफिशियल बारिश में शूट करने की जरूरत पड़ी तो मूव करने वाले शॉट्स में सभी वाटर-टैंक्स और जेनरेटर का कोआर्डिनेशन सबसे मुश्किल काम था. इस पूरे शूट के दौरान लगातार 4 साल एक तरह का लुक मेंटेन करना फिल्म के एक्टर सोहम शाह के लिए बहुत बड़ा चैलेंज हो गया था.