चीन से बचने के लिए 13 दिन की यात्रा के बाद ऐसे भारत आए थे दलाई लामा
BBC
तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा चीनी गिरफ़्त से बचने के लिए बहुत कठिन सफ़र तय करके 63 साल पहले आज ही के दिन भारत पहुँचे थे. कैसी थी वो ऐतिहासिक यात्रा?
मार्च 1959 आते-आते पूरे ल्हासा में अफ़वाह फैल चुकी थी कि दलाई लामा की ज़िंदगी ख़तरे में है और चीनी उन्हें नुक़सान पहुँचा सकते हैं.
ये अफ़वाह और पुख़्ता हो गई, जब चीनियों ने दलाई लामा को 10 मार्च को ल्हासा में चीनी सेना के मुख्यालय में एक सांस्कृतिक समारोह में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया. ये सुनते ही दलाई लामा के महल नोरबुलिंगका के चारों ओर लोगों की भीड़ जमा होनी शुरू हो गई.
भीड़ को अंदेशा था कि ये आमंत्रण दलाई लामा को अपने जाल में फँसाने का चीनी षडयंत्र था. उनका मानना था कि अगर दलाई लामा उस समारोह में जाते हैं, तो उन्हें गिरफ़्तार कर लिया जाएगा.
भारत की पूर्व विदेश सचिव निरुपमा राव अपनी हाल में प्रकाशित किताब 'द फ़्रैकचर्ड हिमालय, इंडिया तिब्बत, चाइना 1949-1962' में लिखती हैं, "लोगों की चिंता इस बात से बढ़ी कि चीनियों ने दलाई लामा से इस समारोह में अपने अंगरक्षकों के बिना आने के लिए कहा था.''
''आखिर में तय हुआ कि दलाई लामा इस समारोह में नहीं जाएँगे. बहाना ये बनाया गया कि लोगों की भीड़ को देखते हुए उनके लिए अपने महल से बाहर निकल पाना बहुत मुश्किल होगा."