क्या 'भोला' को सच में थी 3D की जरूरत, या फिल्म की कमाई में सेंध लगा रही तकनीक?
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अजय देवगन की लेटेस्ट फिल्म 'भोला' थिएटर्स में पहुंच चुकी है. 'भोला' एक धमाकेदार एक्शन फिल्म है और मेकर्स ने प्रमोशन के समय इस बात पर जोर दिया है कि इसे 3D में देखा जाए. फिल्म का 2D वर्जन भी थिएटर्स में है. क्या 'भोला' के कंटेंट के हिसाब से, 3D इसे सूट करता है और क्या फिल्म की कमाई पर इसका असर पड़ रहा है?
बॉलीवुड स्टार अजय देवगन की लेटेस्ट फिल्म 'भोला' गुरुवार को थिएटर्स में रिलीज हो चुकी है. इस बार अजय सिर्फ फिल्म के स्टार ही नहीं हैं, बल्कि डायरेक्टर भी हैं. 'भोला', तमिल हिट फिल्म 'कैथी' का रीमेक है. दोनों की कहानी भले एक जैसी हो मगर हिंदी फिल्म का ट्रीटमेंट, ऑरिजिनल के मुकाबले काफी अलग है.
'भोला' का ट्रेलर आने के बाद ही ये साफ हो चुका था कि अजय ने फिल्म के एक्शन को शानदार बनाने पर काफी मेहनत की है. चाहे बाइक चेज का सीन हो या पचासों खूंखार दिखते गुंडों से अजय की फाइट, 'भोला' का एक्शन वाकई बॉलीवुड स्टैण्डर्ड के हिसाब से बहुत बड़ा है. और शायद इसी स्केल को स्क्रीन पर शानदार तरीके से पेश करने के लिए अजय ने फिल्म को 3D में बनाया है. हालांकि, 'भोला' का 2D वर्जन भी अवेलेबल है. मगर रिपोर्ट्स बता रही हैं कि 3D वर्जन में अजय की फिल्म ज्यादा देखी जा रही है.
सिनेमा एक विजुअल मीडियम है और 3D तकनीक विजुअल्स को यकीनन ज्यादा भव्य दिखाने में हेल्प करती है. ये एक ऐसी तकनीक है जिसके फायदे भले शानदार नजर आते हों मगर इसके अपने नुकसान भी हैं. 'भोला' को रिलीज हुए दो दिन हो चुके हैं और फिल्म ने पहले दो दिन में 18.60 करोड़ रुपये कमाए हैं. ये कलेक्शन बुरा तो नहीं है, लेकिन फिल्म के स्केल और रिलीज से पहले के माहौल के हिसाब से थोड़ा फीका जरूर है. क्या 3D में फिल्म बनाना, इसकी एक वजह हो सकती है? आइए बताते हैं उन वजहों के बारे में जो इस सवाल को जन्म देती हैं.
'भोला' को कितना सूट करता है 3D? 'भोला' की टाइमलाइन को अगर एक लाइन में समेटा जाए, तो ये सिर्फ एक रात की कहानी है. जहां हीरो 10 साल बाद जेल से छूटकर अपनी बेटी के पास जा रहा है, लेकिन एक टॉप-कॉप को बहुत बड़े केस में उसकी मदद की जरूरत है. रात के सीन ज्यादा होने का मतलब ये है कि फिल्म में ज्यादातर सीन्स रात के समय फिल्माए हुए होंगे और इनमें लाइट कम होगी.
3D एक ऐसी तकनीक है, जिसमें इमेज की लाइट कम हो जाती है और वो थोड़ी डार्क दिखती हैं. ऊपर से इसमें कलर्स भी उतने क्लियर नहीं होते. एक तो पहले ही कहानी रात में घट रही है, ऊपर से 3D में होने से डार्कनेस और बढ़ जाती है. 'भोला' देखते हुए ये चीज थिएटर में महसूस की जा सकती है कि डार्कनेस को बैलेंस करने के लिए फिल्म में कलर्स थोड़े ज्यादा चटख रखे गए हैं.
3D ऐसी तकनीक है जिससे विजुअल्स में डेप्थ बढ़ती है और किसी स्ट्रक्चर के साइज का ज्यादा बेहतर आइडिया मिलता है. यही वजह है कि फिल्मों में इसका सबसे बेहतर इस्तेमाल एक नई दुनिया क्रिएट करने या फिर एक्शन सीन्स को एलिवेट करने के लिए किया जाता है क्योंकि इससे विजुअल्स ज्यादा जीवंत लगते हैं.
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