क्या एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री धार्मिक सब्जेक्ट को कर रहा है इनकैश? जानें क्यों...
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आने वाले साल में देखें, तो माइथोलॉजी प्रोजेक्ट्स की बौछार सी है. आखिर ऐसी क्या वजह होगी कि बॉलीवुड में धार्मिक प्रोजेक्ट्स दोबारा से रिवाइव हो रहे हैं? जानते हैं कारण...
कहा जाता है कि सिनेमा हमारे सोसायटी का आइना होता है. देश व समाज में जो कुछ भी चल रहा होता है, फिल्में भी कुछ उसी फ्लेवर पर तैयार की जाती रही हैं. पिछले एक दो सालों में धार्मिक फिल्मों के ट्रेंड ने जोर लिया है. खासकर आने वाले साल में ऐसी ही फ्लेवर की फिल्मों की लिस्ट लंबी है. इसी ट्रेंड पर एक खास रिपोर्ट...
क्या रहा है धार्मिक फिल्मों का इतिहास ? माइथोलॉजी कंटेट को लेकर बॉलीवुड हमेशा से एक्सपेरिमेंटल रहा है. अगर भारतीय सिनेमा के इतिहास को देखें, तो भारतीय सिनेमा के पितामह कहे जाने वाले दादा साहेब फाल्के की भी सबसे पहली फिल्म राजा हरीशचंद्र के जीवन पर ही आधारित थी. 1913 में रिलीज हुई इस साइलेंट फिल्म ने यह साबित किया था कि दर्शकों के सामने परोसने के लिए हमारे पास बहुत सारी पौराणिक और ऐतिहासिक कहानियां हैं. आगे चलकर कालिया मर्दन, मोहिनी भस्मासुर, लंका दहन, श्री कृष्ण जन्म, सत्यवान सावित्री, कंस वध, सति पार्वती, राम जन्म जैसी कई पौराणिक फिल्मों ने दर्शकों को एंटरटेन किया. धार्मिक-पौराणिक फिल्मों की बात करें तो रामायण पर 1933 से 1960 तक 4 फिल्में बन चुकी थी. रामनवमी, रामधुन, रामलीला के अलावा श्रीकृष्ण, महादेव, मां दुर्गा, भगवान विष्णु, हनुमान जी और गणेश जी पर भी हमारे यहां 500 से भी ज्यादा फिल्में अब तक बनाई जा चुकी हैं.
'स्टार्स को आगे आना होगा, तब ही संभव' जाने-माने निर्देशक और इतिहासकार चंद्रप्रकाश द्विवेदी बताते हैं, मेरा मानना है कि फिल्में वही बनती हैं, जिसमें किसी बड़े एक्टर को इंट्रेस्ट हो. जबतक कोई बड़ा एक्टर इंट्रेस्ट नहीं लेगा, तबतक आपका कितना भी अच्छा सब्जेक्ट हो, उसका कोई अर्थ नहीं है. पृथ्वीराज इसीलिए बनी क्योंकि अक्षय कुमार जैसे एक्टर ने साथ दिया. हमारे यहां पौराणिक कहानियों को बनाने की परंपरा पुरानी रही है. हमारी फिल्मों के इतिहास की शुरुआत ही राजा हरिशचंद्र जैसी फिल्म रही है. 1950 से लेकर 1960 में तो कई पौराणिक फिल्में बनीं. हालांकि उसके बाद एक ऐसा दौर आया जहां हम अपने इस कल्चर से दूर चले गए.
हां, वो स्पेस बाद में टेलीविजन ने लिया था. टेलीविजन पर लगातार धार्मिक सब्जेक्ट पर प्रोजेक्ट्स बनाए जा रहे थे. सिनेमा में एक दौर मैंने यह भी देखा था, जहां मैं एक्टर्स के पास अपनी फिल्म की कहानियां लेकर जाता था, तो उन्हें धोती पहनने में संकोच होता था. आप पीछे पलट कर देखें, महाभारत को एक लंबे समय से बनाने की कोशिश की जा रही है. कोशिश बेशक होती रहेंगी, लेकिन जबतक कोई बड़ा एक्टर या फिर बड़ा बजट नहीं मिल जाता है. जब आप इस तरह की फिल्में बनाते हैं, तो ये ही दोनों फैक्टर्स आपके लिए रूकावट हो जाते हैं. वर्ना भारत में पौराणिक कहानियों की कोई कमी तो नहीं है. वहीं कन्नड़ सिनेमा का इतिहास इस मामले में अलग रहा है. यहां भक्तकवियों पर बहुत सारी फिल्में बनी हैं. एनटीआर और एमजी रामचंद्रन का आप इतिहास खंगालेंगे, तो उनलोगों ने पौराणिक चरित्रों से ही खुद को गढ़ा है और जिसकी वजह से राजनैतिक क्षेत्र में सफल रहे हैं. दुर्भाग्य से ही कह लें लेकिन हिंदी सिनेमा में वो वातावरण नहीं तैयार हो पाया है.
जिन फिल्मों में खलनायक विदेशी या इस्लाम मानने वाले होते हैं, तो उस वक्त हमारे एक्टर्स के अंदर यही संकोच होता है कि कहीं वो ऐसा कर किसी एक समुदाय के प्रति एंटी नहीं हो जाएं. आज नालंदा की कहानी इतनी बड़ी है. एक तिब्बती फिल्म मेकर हैं, जो नालंदा की कहानी लेकर मार्केट में घूम रहे हैं लेकिन कोई फिल्म नहीं करना चाहता है. कारण यही है कि उसका हीरो मॉन्क है और खलनायक बख्तियार खिलजी होगा.
हनुमान की सक्सेस ने साबित कर दिया साउथ इंडस्ट्री के जाने-माने ट्रेड एनालिस्ट रमेश बाला इस ट्रेंड पर कहते हैं, पिछले दिनों ही प्राण प्रतिष्ठा के हफ्ते ही साउथ की फिल्म हनुमान पैन इंडिया के तर्ज पर रिलीज की गई थी. फिल्म का बजट मात्र 30 करोड़ रहा होगा. अभी फिल्म 250 करोड़ का ग्रोस बिजनेस कर रही है. कहने का मतलब यही है कि बिना किसी ग्रैंड प्रमोशन या फिर बड़े स्टार्स के बावजूद फिल्म ने कमाल कर दिया. यह वक्त की ही बात है कि ऐसी माइथोलॉजी फिल्मों की डिमांड बढ़ी है. वैसे साउथ में हमेशा से धार्मिक सब्जेक्ट को तवज्जो मिलती रही है, अगर हम इस इंडस्ट्री का इतिहास खंगाल कर देखें, तो आपको इस जॉनर की फिल्में हिंदी से ज्यादा मिलेगी. हां, बाहुबली के बाद से इस ट्रेंड में बदलाव तो आया है. भगवान शिव और महाभारत के रेफरेंस पर बनी इस फिल्म ने लोगों के दिलों पर गहरा इंपैक्ट छोड़ा था.
साहित्य के महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2024' के दूसरे दिन मंच पर मौजूदगी रही मशहूर गायक जुस्त की. जहां उन्होंने 'मेरे घर आया एक चोर' सत्र में 'कल रात आया मेरे घर एक चोर...' जैसे हिट गानों की प्रस्तुति दी और की ढेर सारी बातें. बता दें कि ये 'साहित्य आजतक' का सातवां संस्करण है. और दिल्ली के ध्यान चंद स्टेडियम में आयोजित है.