क्या अजित पवार की बगावत ने कांग्रेस में एनसीपी के विलय का रास्ता खोल दिया है?
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अजित पवार की बगावत के बाद शरद पवार की ताकत और उनके कद्दावर कद को काफी चोट पहुंची है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या शरद पवार की एनसीपी और कांग्रेस में विलय हो सकता है. सूत्र बताते हैं कि पहले भी इस तरह की कोशिश हो चुकी थी, लेकिन कुछ अंदरूनी वजहों से ये विलय नहीं हो पाया था.
राजनीति पूरी तरह संभावनाओं का खेल है और यहां कुछ भी अंतिम नहीं है. ऐसा ही कुछ आजकल शरद पवार के साथ हो रहा है. राजनीति में हमेशा अपनी छवि कद्दावर की रखने वाले शरद पवार को आज अनिश्चितता का सामना करना पड़ रहा है. आलम यह है कि जिन लोगों को उन्होंने संरक्षण देकर आगे बढ़ाया उन्हीं लोगों द्वारा उन्हें एक तरीके से अपमानित किया जा रहा है. बड़ा सवाल यह है कि उम्र में 83 के आंकड़े को छू रहे शरद पवार इन विपरीत परिस्थितियों को अब भी चुनौती दे पाएंगे, और क्या वह फिर से महाराष्ट्र की राजनीति में अपने उसी 'साहेब' वाले कद के रूप मे उभर पाएंगे?
कांग्रेस में विलय की संभावना शरद पवार के लिए क्यों है व्यावहारिक भले ही दोनों पक्ष इस बात से इनकार करें, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के कांग्रेस में विलय की संभावना पवार के लिए एक व्यावहारिक विकल्प है. एक तरफ जब सोनिया गांधी के राष्ट्रीय राजनीति से स्पष्ट रूप से बाहर निकल चुकी हैं तो ऐसे में 1999 में जिस वजह से एनसीपी का गठन हुआ था, अब उसके औचित्य का कोई मतलब नहीं रह गया है. शरद पवार ने तब सोनिया के विदेशी मूल को आधार बनाकर कांग्रेस छोड़ दी थी, लेकिन उनके खिलाफ अपने भाषण के छह महीने के भीतर, अक्टूबर 1999 में पवार महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ सत्ता साझा करने के लिए सहमत हो गए थे.
2019-20 में भी कई बार हो चुका था विचार मूल संगठन यानी कांग्रेस में एनसीपी के विलय की संभावनाओं पर 2019-20 के दौरान कई बार विचार-विमर्श हो चुका है. यह उस दौर की बात है कि जब राहुल गांधी एआईसीसी प्रमुख थे. उस दौरान राष्ट्रीय स्तर और क्षेत्रीय (महाराष्ट्र) स्तर पर नेतृत्व के मुद्दे पर बातचीत विफल हो गई थी, क्योंकि पवार सुप्रिया सुले को उभारना चाह रहे थे. सुले के लिए उस समय NCP के अजित पवार, प्रफुल्ल पटेल की मौजूदगी में एक शीर्ष नेता के रूप में उभरना कठिन था. जाने-माने वकील माजिद मेमन वह शख्स थे जो दोनों पक्षों को करीब लाने की कवायद पर्दे के पीछे से ही कर रहे थे.
2019 में क्यों विफल हुई थी विलय की कोशिश एआईसीसी के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, तब विलय की बातचीत काफी गहरी थी, लेकिन दो कारणों से विफल हो गई. पहली वजह तो थी कि एनसीपी अपनी संपत्तियां जैसे पार्टी भवन, पार्टी, परिवार संचालित ट्रस्ट और अन्य व्यावसायिक प्रतिष्ठान स्थानांतरित करने को तैयार नहीं थी. तब अघोषित संख्या में निजी संपत्तियां थीं जो चर्चा के दायरे से बाहर थीं. शिवसेना और एनसीपी में विभाजन के वर्तमान संदर्भ में, सत्ता संघर्ष के सबसे महत्वपूर्ण पहलू इन 'निजी संपत्तियों' के हस्तांतरण पर वास्तविक चर्चा कम से कम की जाती है. कथित तौर पर उद्धव ठाकरे और शरद पवार दोनों ने इसे नहीं छोड़ा है.
जब पवार ने राहुल पर दिया था ये बयान दिलचस्प बात यह है कि जब विलय की बातचीत चल रही थी, तो 2019 के आम चुनाव से ठीक पहले शरद पवार ने एक इंटरव्यू दिया और राहुल पर निरंतरता की कमी का आरोप लगाया. यह आरोप कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को रास नहीं आया. लोकमत अखबार के मालिक विजय दर्डा, जो खुद एक राजनेता हैं, ने जब पवार से पूछा कि क्या देश राहुल गांधी को नेता के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार है. पवार ने उत्सुकता से जवाब दिया, "इस संबंध में कुछ सवाल हैं, उनमें निरंतरता की कमी लगती है."
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