कोरोना ने दिया दर्द, मां की मौत के बाद अनाथ हुए चार मासूम...इतने बुरे हालात में भी नहीं टूटा इन बच्चों का हौसला, पढ़ें खबर
ABP News
यूपी के बलिया में एक परिवार के 4 बच्चे अनाथ हो गए हैं. अब उनकी परवरिश और भरण पोषण भगवान भरोसे है. इन मासूम बच्चों के सामने अब अपने जीवन को लेकर जीने का संकट खड़ा हो गया है.
बलिया: यूपी के बलिया के बैरिया तहसील क्षेत्र में देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद के पत्नी राजवंशी देवी के पैतृक गांव और उनके ससुराल दलनछपरा गांव में अब कोरोना तेजी से कहर बनकर टूट रहा है. यहां एक परिवार के 4 बच्चे अनाथ हो गए हैं. अब उनकी परवरिश और भरण पोषण भगवान भरोसे है. इन मासूम बच्चों के सामने अब अपने जीवन को लेकर जीने का संकट खड़ा हो गया है. 7 साल के अंकुश पर खेलने की उम्र में ही अपनी मां के अंतिम संस्कार से लेकर श्राद्ध कर्म तक की बड़ी जिम्मेदारी निभाने का बोझ अचानक आ पड़ा. अंकुश चंदा मांगकर आगे की पढ़ाई कर पुलिस बनने की बात कह रहा है. वहीं, बहन दूसरे के खेतों में मजदूरी कर पेट पालने की बात कह रही हैं. गांव के लोगों का कहना है कि सरकार से इन्हें कोई मदद नहीं मिल पाई है. वहीं, एसडीएम का कहना है कि इन बच्चों के परिवार का कोई और सदस्य देखभाल की जिम्मेदारी लेता है तो इनके भरण पोषण के हर महीने 2000 रुपये प्रति बच्चों के हिसाब से 18 वर्ष तक दिया जाएगा और यदि कोई जिम्मेदार नहीं मिलता है ऐसी स्थिति में उन्हें शेल्टर होम में रखा जाएगा. कभी नहीं टूटा बच्चे का हौसला कुछ वर्ष पहले अंकुश के पिता संतोष पासवान की कैंसर के चलते मौत हो गई थी. इसके बाद अंकुश की मां पूनम देवी को भी कोरोना का संक्रमण हो गया और उचित इलाज के अभाव में उनकी भी मौत हो गई. जिसके बाद से ही इनके 4 बच्चे जिनमें सबसे बड़ी काजल, रूबी, रेनू उर्फ सुबी और 7 साल का अंकुश अनाथ हो गए हैं. अब इन बच्चों की परवरिश और भरण पोषण भगवान भरोसे है. मां के गुजर जाने के बाद मासूम अंकुश को मुखाग्नि से लेकर श्राद्ध कर्म तक कि जिम्मेदारी निभानी पड़ी. हालांकि, इस विकट परिस्तिथि में भी अंकुश का हौसला नहीं टूटा है. उसका कहना है कि हम लोगों से चंदा मांगकर अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखेंगे और पढ़कर पुलिस बनेंगे. वहीं, बहनों का कहना है कि अब आगे कैसे चलेगा ये भगवान के भरोसे है. अब हम लोग दूसरे के खेतों में मजदूरी कर गुजर बसर करेंगे. मेडिकल टीम जांच करने नहीं आईवहीं, अंकुश के घर के बगल के रहने वाले इस गांव के पूर्व प्राधान की मानें तो संतोष की 4 साल पहले कैंसर से मौत हो चुकी है और 10 से 11 दिन पहले उनकी पत्नी की भी कोरोना ने जान ले ली. उनको सांस की प्रॉब्लम हुई और मौत हो गई. अब इन बच्चों का पालन पोषण करने के लिए कोई नहीं है. अभी तक सरकार का कोई नुमाइंदा तक नहीं आया है. गांव में कोरोना की वजह से 10 से 12 लोगों की मौत हो चुकी है. लेकिन, गांव में अब तक कोई मेडिकल टीम जांच करने नहीं आई है.More Related News