कोरोना काल में अदालतों पर मुकदमों का बोझ और बढ़ा, 19 हजार कोर्ट में 5 हजार से ज्यादा जजों की कमी
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हमारी अदालतों में मुकदमें निपटाने या फैसला आने की मौजूदा रफ्तार के मुताबिक मुकदमों का बोझ निपटने में 324 साल लगेंगे. केंद्र सरकार के न्याय विभाग के आंकड़ों से ही खुलासा हुआ कि पिछले साल 2020 के मार्च में देश भर की अदालतों में 3 करोड़ 68 लाख मामले लंबित थे, वहीं अब इसी समय 4 करोड़ 31 लाख से ज्यादा मामले लंबित हैं. इन लंबित मामलों में 61 फीसदी तो ऐसे हैं जो करीब तीस सालों से लंबित ही हैं.
कोरोना और इसकी वजह से हुए लॉकडाउन को साल भर से ज्यादा का समय बीत गया है. लेकिन एक बार फिर से कोरोना ने अपना विकराल रूप दिखाना शुरू कर दिया है. कोरोना के चलते देश की अदालतों में सुनवाई भी फिजिकल से वर्चुअल होने लगी. कहने को तो सुनवाई चल रही है न्याय भी मिल रहा है, लेकिन ये भी उतना ही सच है कि अदालतों पर मुकदमों का बोझ भी बढ़ रहा है. नए मुकदमों की आमद और पुराने के निपटारे के बीच पिछले सालों के औसत के मुकाबले 19 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. इस आंकड़े यानी 19 फीसदी के हिसाब से ये संख्या चार करोड़ चालीस लाख बैठती है. ये आंकड़े सिर्फ सुप्रीम कोर्ट या देश के 25 हाईकोर्ट के ही नहीं बल्कि इसमें पूरे देश के 19000 से भी ज्यादा जिला और सत्र अदालतों के मामले भी शामिल हैं.सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात यह रही कि खींवसर को तीन क्षेत्रों में बांटकर देखा जाता है और थली क्षेत्र को हनुमान बेनीवाल का गढ़ कहा जाता है. इसी थली क्षेत्र में कनिका बेनीवाल इस बार पीछे रह गईं और यही उनकी हार की बड़ी वजह बनी. आरएलपी से चुनाव भले ही कनिका बेनीवाल लड़ रही थीं लेकिन चेहरा हनुमान बेनीवाल ही थे.
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हिंदी साहित्य के विमर्श के दौरान आने वाले संकट और चुनौतियों को समझने और जानने की कोशिश की जाती है. हिंदी साहित्य में बड़े मामले, संकट और चुनने वाली चुनौतियाँ इन विमर्शों में निकली हैं. महत्वपूर्ण विचारकों और बुद्धिजीवियों ने अपने विचार व्यक्त किए हैं. हिंदी साहित्यकार चन्द्रकला त्रिपाठी ने कहा कि आज का विकास संवेदन की कमी से ज्यादा नजर आ रहा है. उन्होंने कहा कि व्यक्ति प्रेम के लिए वस्तुओं की तरफ झूक रहा है, लेकिन व्यक्ति के प्रति संवेदना दिखाता कम है. त्रिपाठी ने साहित्यकारों के सामने मौजूद बड़े संकट की चर्चा की. ये सभी महत्वपूर्ण छोटी-बड़ी बातों का केंद्र बनती हैं जो हमें सोचने पर मजबूर करती हैं.