केन-बेतवा लिंक: 23 लाख पेड़ काटने के एवज़ में ग़ैर-वन भूमि नहीं ढूंढ सकी सरकार, नियम बदलवाने की कोशिश
The Wire
द वायर द्वारा प्राप्त किए गए दस्तावेज़ों से पता चलता है कि केन-बेतवा प्रोजेक्ट के तहत सरकार जितनी ज़मीन प्रतिपूरक वनीकरण के रूप में दिखा रही है, उसमें से भी काफ़ी स्थानीय निवासियों की निजी भूमि है.
(इंटरन्यूज़ के अर्थ जर्नलिज्म नेटवर्क के सहयोग से की गई यह रिपोर्ट केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना पर छह लेखों की शृंखला का दूसरा भाग है. पहला भाग यहां पढ़ें.) छतरपुर/पन्ना: केन नदी से करीब 700 मीटर की दूरी पर गौरी शंकर यादव का दौधन गांव है, जो पन्ना टाइगर रिजर्व के भीतर में स्थित है. यादव और उनका पूरा गांव, जिसमें बड़ी संख्या में आदिवासी भी हैं, इस नदी और इससे सटे जंगल पर निर्भर है. वे यह बात सुनकर सिहर उठते हैं कि केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना के नाम पर अब यहां पर एक बहुत बड़ा बांध बनाया जाएगा, जिसके चलते उन्हें हटाया जाएगा और लाखों की संख्या में पेड़ कटेंगे. यादव कहते हैं, ‘हमारा जीवन इन्हीं जंगलों से चलता था. महुआ बीनते थे, लकड़िया बेचते थे, बांस काटते थे, जो लोग पलायन करके अब दिल्ली जाते हैं, वे यहीं कमा-खा लेते थे. इन पेड़ों को काटने से जो नुकसान होगा, उसकी भरपाई नहीं हो सकती.’More Related News