कांग्रेस में सुधार की जरूरत! थरूर के वोट गांधी परिवार को दे रहा अहम संदेश
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कांग्रेस में प्रेसिंडेट पद के लिए चुनाव तो पूरा हो गया. लेकिन इस चुनाव ने पार्टी और गांधी परिवार की मुश्किलों को और बढ़ा दिया है. थरूर इस चुनाव में भले हार गए हों लेकिन उनके 1072 वोट भी गांधी परिवार के लिए स्ट्रॉन्ग मैसेज हैं. अब अगर थरूर को कोई अच्छा पद नहीं दिया गया तो पार्टी के लिए मुसीबतें बढ़ सकती हैं.
कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव खत्म हो गया है और मल्लिकार्जुन खड़गे को नया प्रेसिडेंट चुना गया है. इस चुनाव में शशि थरूर की हार हुई है. इस चुनाव में 9385 वोट पड़े जिनमें से खड़गे को 7897 वोट मिले तो थरूर को 1072 वोटों से ही संतोष करना पड़ा. जबकि 416 वोट अमान्य थे. थरूर की इस हार ने देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के सामेन एक स्ट्रॉन्ग मैजेस दिया है. इस चुनाव में हार का जो अंतर है वो कांग्रेस में बदलाव की इच्छा को साफ दर्शाता है. ऐसे में सवाल यह है कि क्या मल्लिकार्जुन खड़गे भी शशि थरूर को उसी तरह से सराहेंगे जिस तरह से हिलेरी क्लिंटन को बराक ओबामा ने डेमोक्रेट प्राइमरी में लंबी लड़ाई के बाद भी एक ऊंचा पद दिया था?
थरूर की हार ने दे दिया पार्टी को मैसेज
थरूर के लिए 1072 वोटों की संख्या प्रभावशाली है और गांधी परिवार के लिए एक मैसेज है. मैसेज है कि पार्टी में सुधार करें. अगर 9000 में से 1072 लोग अपनी पसंद के व्यक्ति को वोट दे सकते हैं तो ऐसी संभावना है कि इसी सोच वाले कांग्रेस प्रतिनिधियों का नंबर और भी रहा होगा, लेकिन वो वोट देते समय नंबर दो पर टिक करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए. ऐसे में ये संभावना है कि 2024 के बाद होने वाले चुनाव में यह आंकड़ा उलट भी सकता है. मतलब 8000 वोट गांधी परिवार के खिलाफ वाले उम्मीदवार को जा सकता है और गांधी समर्थित उम्मीदवार को 1072 वोट ही मिल सकते हैं.
रोमांचक रहा है कांग्रेस में चुनावों का इतिहास
कांग्रेस के इतिहास और विरासत में ऐसे लोगों को समायोजित करने और उन्हें दरकिनार करने की मिसालें हैं, जिन्होंने स्थापित पार्टी नेतृत्व की ताकत को चुनौती देने की कोशिश की थी. सुभाष चंद्र बोस ने 1939 का चुनाव जीता लेकिन महात्मा गांधी खुद व्यक्तिगत तौर पर उनके उम्मीदवारी के खिलाफ थे. 1950 में, जवाहरलाल नेहरू के न चाहने के बाद भी पीडी टंडन जीते तो नेहरू ने भी कई पत्र लिखे, जिससे टंडन को अचानक पद छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा. 1977 में, डी के बरुआ के इस्तीफे के बाद पार्टी प्रमुख बने ब्रह्मानंद रेड्डी ने इंदिरा गांधी को कांग्रेस से निष्कासित कर दिया था. यह एक अलग कहानी है कि इंदिरा ने एक अलग समूह बनाकर बड़े पैमाने पर वापसी की और अंततः 'असली कांग्रेस' तैयार हो गई.
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