कांकेः जहाँ खुला था देश का पहला मानसिक चिकित्सालय
BBC
झारखंड में 100 से ज़्यादा साल पुराने मानसिक चिकित्सालय की दुनिया की एक झलक.
देश में मानसिक रोगियों का इलाज करने वाले डॉक्टरों की कमी है. न केवल साइकियाट्रिक बल्कि क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट और उनकी मदद करने वाली नर्सों और दूसरे क्लीनिकल सहयोगियों की संख्या भी ज़रूरत के मुताबिक़ नहीं है. इसका असर मानसिक अस्पतालों की व्यवस्था पर पड़ता है.
इसी कारण अस्पतालों में रोगियों की भीड़ है और डॉक्टरों पर काम का दबाव है.
इस बात का पता भारत सरकार द्वारा साल 2015-16 में देश के 12 राज्यों में कराए गए नेशनल मेंटल हेल्थ सर्वे (एनएमएचएस) से हुआ. इस रिपोर्ट के मुताबिक़, देश की कुल आबादी का 10.6 फ़ीसदी हिस्सा मानसिक बीमारियों से ग्रसित लोगों का है. इनके इलाज के लिए 15,000 साइकियाट्रिस्ट्स की जरुरत है. भारत में अभी साइकियाट्रिस्ट्स की संख्या 4000 से भी कम है.
इसकी पढ़ाई करने वालों की संख्या भी कम है. ऐसे में सबसे बड़ी चुनौती ज़रूरत के मुताबिक़ मनोचिकित्सकों की बहाली और उन्हें पढ़ाने के लिए ज़रूरी संसाधनों के इंतज़ाम की है.
झारखंड के कांके गांव में स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ साइकेट्री (सीआइपी) के निदेशक डॉक्टर डी राम मानते हैं कि लोगों को मानसिक तौर पर स्वस्थ रखना इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि यह संख्या देश की हेल्थ इकोनॉमी की सूचक है. इससे परिवार, समाज और देश पर असर पड़ता है.