कमला भसीन: सरहद पर बनी दीवार नहीं, उस दीवार पर पड़ी दरार…
The Wire
स्मृति शेष: प्रख्यात नारीवादी कमला भसीन अपनी शैली की सादगी और स्पष्टवादिता से किसी मसले के मर्म तक पहुंच पाने में कामयाब हो जाती थीं. उन्होंने सहज तरीके से शिक्षाविदों और नारीवादियों का जिस स्तर का सम्मान अर्जित किया, वह कार्यकर्ताओं के लिए आम नहीं है. उनके लिए वे एक आइकॉन थीं, स्त्रीवाद को एक नए नज़रिये से बरतने की एक कसौटी थीं.
कमला भसीन के जीवन की आखिरी लड़ाई कैंसर के एक बेहद घातक प्रकार से थी. उन्होंने एक असहनीय दर्द का मुकाबला विडंबना के साथ और सामने खड़ी मौत का सामना रोजमर्रा के आम दिनचर्या के साथ किया. भारतीय स्त्रीवाद को उनका सबसे बड़ा योगदान था, अपने आदर्शों के साथ समझौता न करने और उन्हें एक बिल्कुल अलग तरीके से व्यवहार करने वाली दुनिया के सामने कहने का संकल्प.
उनकी प्रतिभा उनके संदेश गढ़ने के तरीके में थी: जो पितृसत्ता को सच का आईना दिखाने वाला और सबसे ज्यादा पीड़ित को सहारा देने वाला था. यह काम उन्होंने एक ऐसी भाषा का इस्तेमाल करते हुए किया जो सबके साथ सीधे, सहज और गर्मजोशी के साथ संवाद करती थी.
कमला का विमर्श कभी उबाऊ नहीं था.
उनके पास एक जटिल राजनीतिक स्त्रीवादी बहस के सार को एक सहज तुकबंदी, लय और गीत में ढाल लेने की एक असाधारण क्षमता थी. जिस आत्मविश्वास, सहजता और बेहद उन्मुक्त तरीके से वे बेहद विविधता भरे लोगों के समूहों को अनेक मुहावरों में स्त्रीवाद की अवधारणों से परिचित कराती थीं, वह अद्वितीय था.